पाणिनीय अष्टाध्यायी में भारत का भूगोल | Indian Geography in Aṣṭādhyāyī of Pāṇini

Spread the love! Please share!!

पाणिनीय अष्टाध्यायी में भारत का भूगोल
============================

आचार्य पाणिनि ने अष्टाध्यायी में अनेक विधाओं का वर्णन किया है । उसमें न केवल व्याकरण है, अपितु उसमें दर्शन, आयुर्वेद, धर्म, संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, भूगोल सब कुछ प्राप्य है ।

आज हम अष्टाध्यायी में वर्णित भारत के कुछ भागों का वर्णन करेंगे ।

कपिशा:

भारत के उत्तर-पश्चिम में कापिशी (४.२.९९) नगरी का उल्लेख है । प्राचीन काल में यह प्रसिद्ध राजधानी थी । यह काबूल से उत्तर में लगभग ५० मील दूर इसके अवशेष मिले हैं । इसे कपिशा भी कहा गया है । आजकल इसका नाम बेग्राम है । कापिशी से और भी उत्तर में कम्बोज (४.१.१७५) जनपद था, जहाँ इस समय दक्षिण एशिया का पामीर पठार है । कम्बोज के पूर्व में तारिम नदी के पास “कूचा” प्रदेश था, जिसे पाणिनि ने “कूच-वार” (४.३.९४) कहा है ।

मद्र जनपद:

तक्षशिला के दक्षिण-पूर्व में मद्र जनपद (४.२.१३१) था, जिसकी राजधानी शाकल (वर्त्तमान में स्यालकोट, पाकिस्तान) थी ।

 

त्रिगर्त देशः

मद्र के दक्षिण में उशीनर (४.२.११८) और शिवि जनपद थे । वर्त्तमान पंजाब का उत्तर-पूर्वी भाग जो चम्बा से कांगडा तक फैला हुआ है, प्राचीन त्रिगर्त देश था । इसका नाम त्रिगर्त इसलिए पडा, क्योंकि यह तीन नदियों की घाटियों में बसा हुआ था, ये तीन नदियाँ थीं–सतलुज, व्यास और रावी । (५.३.११६)

भरत जनपदः

दक्षिण-पूर्वी पंजाब में थानेश्वर-कैथल-करनाल-पानीपत का भूभाग “भरत-जनपद” कहलाता था । इसी का दूसरा नाम प्राच्य भरत (४.२.११३) भी था, क्योंकि यहीं से देश के उदीच्य और प्राच्य इन दो खण्डों की सीमाएँ बँट जाती थीं ।

कुरु जनपदः

दिल्ली-मेरठ का प्रदेश कुरु-जनपद (४.१.१७२) कहलाता था । इसकी राजधानी हस्तिनापुर थी (४.२.१०१) । अष्टाध्यायी (४.२.१०२) में उसका रूप हास्तिनापुर था ।

पञ्चाल जनपद:

गंगा और रामगंगा के बीच में प्रत्यग्रथ नामक जनपद (४.१.१७१) था, जिसे पञ्चाल जनपद भी कहते थे ।

कोशल और काशी:

मध्यदेश में कोशल (४.१.१७१) और काशी (४.२.११६) जनपद थे ।

मगध जनपद:

इसके पूर्व में मगध जनपद (४.१.१७०) था ।

कलिंग जनपद:

पूर्वी समुद्र तट पर कलिंग देश था, जहाँ इस समय महानदी बहती है ।

सूरमस जनपद:

सूत्र (४.१.१७०) में पाणिनि ने सूरमस जनपद का नामोल्लेख किया है । इसका पहचान असम प्रान्त की सूरमा नदी की घाटी और गिरि-प्रदेश से की जा सकती है ।

कच्छ जनपद:

पश्चिम में समुद्र तटवर्ती कच्छ जनपद (४.२.१३३) था ।

अश्मक जनपद:

दक्षिण में गोदावरी तटवर्ती अश्मक जनपद (४.१.१७३) का नामोल्लेख भी हुआ है । अश्मक की राजधानी प्रतिष्ठान थी , जो गोदावरी के बाएँ किनारे, मुम्बई और हैदराबाद की सीमा पर वर्त्तमान पैठन है । कलिंग और अश्मक एक ही अक्षांश रेखा पर थे ।

इस प्रकार पश्चिम में कम्बोज (पामीर) से लेकर पूर्व में कामरूप असम के छोर तक के फैले हुए जनपदों का ताँता अष्टाध्यायी में पाया जाता है ।

हिमवत यानि हिमालय:

उत्तर के पहाडों में हिमालय का नाम “हिमवत्” (४.४.११२) था ।

पाणिनि को भारतीय समुद्रों का भी परिचय था । किनारे के पास के द्वीपों को पाणिनि ने अनुसमुद्र द्वीप (४.३.१०) कहा है ।

जो वस्तुएँ इन द्वीपों में होती थीं, उन्हें “द्वैप्य” कहा जाता था । बीच समुद्र में स्थित द्वीपों में उत्पन्न वस्तुएँ “द्वैप” कहलाती थीं ।

अन्तरयन दक्षिण भारत का भूभाग:

इसके दक्षिण में भारतवर्ष का भूभाग “अन्तरयन” कहलाता था ।

अयनांशों के बीच के देशों के लिए पाणिनि ने अन्तरयन (८.४.२५) शब्द का प्रयोग किया है । कर्क के अयनांश रेखा कच्छ-भुज से आनर्त अवन्ती जनपदों को पार करती हुई सूरमस तक चली गई है ।

 


Spread the love! Please share!!
Shivesh Pratap

Hello, My name is Shivesh Pratap. I am an Author, IIM Calcutta Alumnus, Management Consultant & Literature Enthusiast. The aim of my website ShiveshPratap.com is to spread the positivity among people by the good ideas, motivational thoughts, Sanskrit shlokas. Hope you love to visit this website!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is the copyright of Shivesh Pratap.