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जीएम (Genetic Modification) क्या हैं ?
Genetic Modification यानि जीनान्तरण, जेनेटिक इंजीनियरिंग की वह विधा है जिसमें किसी जैविक जीनोम (organism’s genome) को बायो तकनीकी की मदद से परिवर्तित कर दिया जाए |
यह एक क्रांतिकारी कदम होने के साथ ही आत्मघाती कदम भी है | जैसे की नाभिकीय रिएक्टर से अपार बिजली तो बनाई जा सकती है पर किसी प्राकृतिक आपदा या चूक से नाभिकीय पदार्थों के रिसाव से लाखों लोगों के जींस में परिवतन से यह पीढ़ियों के लिए अभिशाप भी बन सकता है |
जीएम फसलें (Genetically Modified Crops) क्या हैं ?
जैनेटिक इंजीनियरिंग के द्वारा किसी भी जीव या पौधों के जीन को दूसरे पौधों में डाल कर एक नई फसल की प्रजाति विकसित कर सकते हैं। मतलब यह कि अब दो अलग-अलग प्रजातियों में भी संकरण किया जा रहा है।
वैसे प्रकृति में जीनों का जोड़-तोड़ चलता रहता है। पर प्रकृति में यह बड़ी धीमी प्रक्रिया है, कई हजारों लाखों वर्षों में ये बदलाव आते हैं। क्योंकि प्रकृति पूरी तरह तसल्ली करके ही किसी पौधे या जानवर या सूक्ष्मजीव को पनपने देती है, वरना उसे खत्म कर देती है। लेकिन आज जैनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से जीनों को एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में डाला जा रहा है। इस प्रकार प्राप्त फसलों को पारजीनी फसलें यानी जैनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप (Genetically modified crops) कहा जाता है।
हालांकि इन फसलों का विचार नया लगता है लेकिन इनके संबंध में मानव समाज में सदियों से विचार पनपते रहे हैं। मानव अपने जीवन को सुविधाजनक करने के लिए समय-समय पर अनेक वस्तुओं का विकास करता रहता है। इसी प्रकार फसलों को उगाने के दौरान फसलों को अनेक बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी बनाने या उनमें कम पानी में विकास करने की क्षमता को विकास करने के लिए प्रयास किए जाते रहे हैं । साथ ही फसलों से अधिक उत्पादन के लिए भी अनेक प्रयास किए गए हैं। जीनांतरित फसलें इसी दिशा में एक और कदम हैं।
जीएम फसलों के लाभ | Benefits of Genetically Modified Crops:
सोचिये यदि गुलाब का ऐसा पौधा हो जिसे रोजाना पानी देने के बजाय सिर्फ महीने में एक बार पानी देने से वह बढ़ता रहे |
या ऐसा टमाटर का पौधा हो जिससे उपजे टमाटर बिना सड़े लंबे समय तक ताजा रहें|
या आलू का ऐसा पौधा हो जिसमें कीट न लगें और जिससे अधिक मात्रा में आलू मिलें या फिर
चावल का ऐसा पौधा हो जिसमें कुछ औषधीय गुण भी हो।
पौधों में ऐसा सिर्फ उन पौधों में हो सकता है जो जीनांतरित हों।
जीनान्तरण की प्रक्रिया | Process of Genetic Modification:
इसके लिए शोधकर्ता टिश्यू कल्चर, म्युटेशन यानि उत्परिवर्तन द्वारा और नए सूक्ष्मजीवों की मदद से पौधों में नए जीनों का प्रवेश कराते हैं। इस तरह की एक बहुत ही समान्य प्रक्रिया में पौधे को एगारेबेटेरियम टुमुफेसियन् (Agrobacterium tumefaciens) नामक सूक्ष्मजीव से सक्रंमित कराया जाता है। यह सूक्ष्मजीव एक विशिष्ट जीन जिसे टी-डीएनए (transfer DNA) कहा जाता है| इससे पौधे को सक्रंमित करके पौधे में डीएनए का प्रवेश कराकर एक युति बनाता है। शोधकर्ता इस एगा्रेबेटेरियम के टी-डीएनए को वांछित जीन जो बीमारी या कीट प्रतिरोधक होता है उससे सवाधानी से प्रतिस्थापित कर देते हैं जिससे वह कीट फसल को प्रभावित न कर सके और फसल उत्पादन में वृद्धि हो सके।
बैक्टीरिया से संक्रमित वांछित जीन को टी-डीएनए (transfer DNA) के स्थान पर प्रतिस्थापित करके पौधे के जीनोम में बदलाव लाकर मनचाहे गुणों की जीनांतरिक फसल प्राप्त की जाती है। वैज्ञानिक डीएनए बंध के लिए बहुत ही सूक्ष्म सोने और टंगस्टन के कणों का उपयोग करते हैं जिनको उच्च दाब पर पौधे के जीनोम में कोशिका नाभिक में छोड़ा जाता है।
क्या है बीटी कॉटन, बीटी बैंगन और बीटी सरसों का मुद्दा:
हमने अक्सर बीटी कॉटन (BT Cotton), बीटी बैंगन (BT Bringle), बीटी आलू (BT Pottato) नाम सुना होगा। इसमें आगे वाला शब्द बीटी को बेसिलस थुरेंजिनेसिस (Bacillus Thuringiensis) बेक्टेरिया के संक्षिप्त नाम के रूप में उपयोग किया जाता है। इस बेक्टीरिया में उपस्थित विशेष जीन जिसे सीआरवायी (Cry1Ac) जीन कहते हैं की मदद से यह एक प्राकृतिक कीटनाशक जिसे सीआरवाय टॉक्सिन (Cry) कहते हैं बनाया जाता है। जब इस जीन को पौधे में डाला जाता है तो पौधा कीटनाशक उत्पन्न करता है जिससे वह कीटों के प्रति प्रतिरोधक हो जाता है।
जीएम फसलें भारतीय परिप्रेक्ष्य में:
दरअसल, पहली बार 1996 में पहली बार जीएम बीज (GM Seeds) भारत में पेश किए गए थे। उससे पूर्व करीब 25 देशों में उनका इस्तेमाल किया जा चुका था। अब देश में दस अन्य जीएम फसलों के उत्पादन की तैयारी हो चुकी है। हालांकि इनके बाजार में आने का मार्ग तभी तय हो सकेगा जबकि बीटी बैंगन को व्यावसायिक तौर पर सफलता मिलेगी। अन्य फसलों में चावल, आलू, टमाटर, मक्का, मूंगफली, गोभी जैसी सब्जियां हैं।
सन् 2002 में देश में 55 हजार किसानों ने देश के चार मध्य और दक्षिणी राज्यों में BT कपास फसल उगाई थी। फसल रोपने के चार माह बाद कपास के ऊपर उगने वाली रुई ने बढ़ना बंद कर दिया था। इसके बाद पत्तियां गिरने लगीं। बॉलवर्म भी फसलों को नुकसान पहुंचाने लगा था। अकेले आंध्र प्रदेश में ही कपास की 79 प्रतिशत फसल को नुकसान पहुंचा था।
मध्य प्रदेश में समूची कपास फसल बर्बाद हो गई थी। महाराष्ट्र में भी तीस हजार हैक्टेयर में उगाई गई फसल बर्बाद हो गई थी। नतीजतन, 200 से अधिक किसानों ने आत्महत्याएं की और करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। बाद में नतीजे सामने आए कि कीट के कारण फसल को नुकसान पहुंचा था और यह फसल पारंपरिक और बीटी दोनों थीं।
वैसे कुल 56 जीएम फसलों के उत्पादन की तैयारी है जिनमें से 41 खाद्यान्न से जुड़ी हैं। हालांकि, बीटी कॉटन व्यावसायिक तौर पर जारी किया जा चुका है और इसे सफलता मिली है। लेकिन अन्य जो फसलें जिन पर अभी प्रयोगशाला में शोध चल रहे हैं वह हैं गेहूं, बासमती चावल, सेब, केला, पपीता, प्याज, तरबूज, मिर्च, कॉफी और सोयाबीन। कई गैर खाद्यान्न फसलों पर भी शोध जारी हैं।
बीटी कॉटन से केवल मोंसेंटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मुनाफा हो रहा है, जो अपने पेटेंट किए हुए बीजों से अब तक 1,500 करोड़ रुपये की रॉयल्टी कमा चुकी है
कुल मिला कर हमें सम्पूर्ण मानवता के लिए अभिशाप सिद्ध होने वाले इस जीएम फसलों (Genetically Modified Crops) पर बेहद सावधान होने की जरुरत है | जब तक इसपर विश्व स्तर पर पूरी तरह से यह सिद्ध न हो जाए की यह मानवता के लिए सुरक्षित है इसका प्रयोग निषिद्ध होना चाहिए |
भारत की प्रकृति ईश्वर प्रदत्त है परन्तु इसमें हस्तक्षेप शुरू हो गया है | आज भारत के पास एक भी मुर्राह और साहिवाल पशुओं की शुद्ध ब्रीड नहीं बची है | इसकी शुद्ध ब्रीड का संरक्षण केवल क्यूबा के पास हो रहा है |
भारतीय नश्लों में रोग प्रतिरोध की जबरदस्त क्षमता होती है | पश्चिम की घुसपैठ से जानवरों में यह क्षमता खतम होती जा रही है जो हम सब देख रहे हैं |
1990 में अमेरिका से आयात हुए गेंहू में ऐसे खरपतवार आये जिसने भारत की फसलों की कमर तोड़ दिया | इसके बाद आया अमेरिका के “Monsanto” कंपनी के खरपतवार नाशक दवाइयों का अंतहीन दौर | यह चल ही रहा था की यह खतरनाक कम्पनी GM बीजों के साथ भारत में आ रही है जो हमारी सभ्यता के लिए भी खतरा बन सकती है |
कुछ सालों पहले ही पश्चिमी देशों ने एक द्वीप पर संसार के सारे अनाज के बीजों और जीवों का संरक्षण यह कहकर किया की किसी भी परमाणु या विकिरण हमले में भी संसार की प्रकृति को बचाया जा सके |
अब उसके 3 सालों बाद, उन्ही के द्वारा GM बीजों का षड़यंत्र भारत जैसे कृषि प्रधान देश को अपने गिरफ्त में लेने को आतुर है |
न जाने क्यों भाजपा की मोदी सरकार विदेशी कंपनियों के हाथों भारत की अस्मिता “कृषि” को बेचने को तैयार है | अब जबकि स्वदेशी कृषि के समर्थक और GM फसलों के विरोधी श्री अनिल माधव दवे जी का निधन हो गया और मोदी सरकार में रहकर भी पूँजीवादी ताकतों से लड़ने वाले नेता नहीं रहे तो ऐसे में हम सबका यह कर्तव्य है की इन GM फसलों का विरोध कर अपनी संस्कृति और मानवता की रक्षा करें |
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