चाणक्य की जीवनी, चाणक्य के अनमोल विचार
Chanakya Biography & Quotes in Hindi
चाणक्य की जीवनी Chanakya Biography:
नाम: चाणक्य (Chanakya)
उपनाम: कौटिल्य, विष्णुगुप्त
जन्म: 375 ईसापूर्व पाटलिपुत्र
शिक्षा प्राप्त की: तक्षशिला
राष्ट्रीयता: भारतीय
क्षेत्र: Politics, Economics
मृत्यु: ईसापूर्व 283 पाटलिपुत्र
चाणक्य का परिचय:
आचार्य चाणक्य जो कि विष्णुगुप्त व कौटिल्य के नाम से भी विख्यात हैं एक महान विद्वान् थे|
चाणक्य राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के समय उनके मंत्रीमंडल में महामंत्री थे|
चाणक्य का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था इनकी शिक्षा महान शिक्षा केंद्र तक्षशिला में हुई|
14 सालो तक चाणक्य (कौटिल्य) ने अध्ययन किया और 26 वर्ष की आयु में इन्होंने अर्थशात्र, समाजशात्र, और राजनीति विषयो में गहरी शिक्षा प्राप्त की एवं नालंदा में उन्होंने शिक्षण कार्य किया|
उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया।
चाणक्य अर्थशास्त्र, राजनीति एवं कूटनीति के ज्ञानी थे:
उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है।
अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है।
राज्य के सप्तांग सिद्धांत (चाणक्य के अनुसार राज्य के 7 अंग):
1. राजा: राजा जिसके चारों ओर शक्तियां घूमती हैं। कौटिल्य के अनुसार अमात्य का अर्थ मंत्री और प्रशासनिक अधिकारी दोनों से है।
2.अमात्य: अमात्य राजा का दूसरा महत्वपूर्ण अंग है। अमात्य की महत्त्व को बताते हुए चाणक्य कहते हैं:-
“एक पहिए की गाड़ी की भांति राज-काज भी बिना सहायता से नही चलाया जा सकता इसलिए राज्य के हित में सुयोग्य अमात्यो की नियुक्ति करके उनके परामर्श का पालन होना चाहिए।”
3. जनपद: चाणक्य ने तीसरे अंग के रुप में जनपद को स्वीकारा है। जनपद कार्यालय अर्थ है जनयुक्त भूमि। जनपद की व्याख्या करते हुए कौटिल्य कहते हैं, जनपद की स्थापना ऐसी होनी चाहिए, जहां यथेष्ठ अन्न की पैदावार हो। किसान मेहनती और लोग शुद्ध स्वभाव वाले हों। नदियां और खेत खुशहाली का वातावरण पैदा करते हों।
4. दुर्ग: कौटिल्य ने कहा है कि दुर्ग राज्य के प्रति रक्षात्मक शक्ति तथा आक्रमण शक्ति के प्रतीक हैं। उन्होंने चार प्रकार के दुर्ग की व्याख्या की है।
- औदिक दुर्ग: इस दुर्ग के चारो ओर पानी भरा होता है।
- पार्वत दुर्ग: इसके चारों ओर पर्वत या चट्टानें होती हैं।
- धान्वन दुर्ग: इसके चारों ओर ऊसर भूमि होती हैं जहां न जल न घास होती है।
- वन दुर्ग: इनके चारो ओर वन एवं दलदल पाए जाते हैं।
5. कोष: राज्य के संचालन में और दूसरे देश से युद्ध तथा प्राकृतिक आपदाओं से बाहर निकलने के लिए कोष की आवश्यकता होती है। कौटिल्य ने इसकी महत्ता को स्वीकारते हुए कहा कि-
धर्म, अर्थ और काम इन तीनों में से अर्थ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है या यूं कहा जाए कि अर्थ दोनों का आधार स्तंभ है।
6. दण्ड: कौटिल्य के अनुसार, दण्ड का आशय सेना से है। सेना राज्य की सुरक्षा की प्रतीक है।
7. मित्र: कौटिल्य के अनुसार राज्य की प्रगति मित्र भी आवश्यक है। कौटिल्य कहते हैं कि मित्र ऐसा होना चाहिए जो वंश परंपरागत हो, उत्साह आदी शक्तियों से युक्त तथा जो समय पर सहायता कर सके।
चाणक्य के अनमोल विचार:
ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
व्यवसाय में लाभ से जुड़े अपने राज किसी भी व्यक्ति के साथ साझा करना आर्थिक दृष्टी से हानिकारक हो सकती है। अत: व्यवसाय की वास्तविक ज्ञान को अपने तक ही सिमित रखें तो उत्तम होगा।
किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले 3 प्रश्नों का उत्तर अपने आप से जरुर कर लें कि- क्या तुम सचमुच यह कार्य करना चाहते हैं? आप यह काम क्यों करना चाहते हैं? यदि इन सब का जवाब सकारात्मक मिलता है तभी उस काम की शुरुआत करनी चाहिए।
वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है।
शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है|
शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें।
सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।
एक बिगड़ैल गाय सौ कुत्तों से ज्यादा श्रेष्ठ है। अर्थात एक विपरीत स्वाभाव का परम हितैषी व्यक्ति, उन सौ लोगों से श्रेष्ठ है जो आपकी चापलूसी करते है।
सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते है।
सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।
जैसे ही भय आपके करीब आये, उस पर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दीजिये|
कोई व्यक्ति अपने कार्यों से महान होता है, अपने जन्म से नहीं|
सर्प, नृप, शेर, डंक मारने वाले ततैया, छोटे बच्चे, दूसरों के कुत्तों, और एक मूर्ख इन सातों को नीद से नहीं उठाना चाहिए|
हमें भूत के बारे में पछतावा नहीं करना चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए| विवेकवान व्यक्ति हमेशा वर्तमान में जीते हैं|
सबसे बड़ा गुरु मन्त्र है कभी भी अपने राज़ दूसरों को मत बताएं ये आपको बर्वाद कर देगा|
पहले पांच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये| अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये| जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यवहार करिए| आपके वयस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं|
जो लोग परमात्मा तक पहुंचना चाहते हैं उन्हें वाणी, मन, इन्द्रियों की पवित्रता और एक दयालु ह्रदय की आवश्यकता होती है|
फूलों की सुगंध केवल वायु की दिशा में फैलती है. लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है|
दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति नौजवानी और औरत की सुन्दरता है|
हर मित्रता के पीछे कोई ना कोई स्वार्थ होता ह. ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसमे स्वार्थ ना हो यह कड़वा सच है|
संतुलित दिमाग जैसी कोई सादगी नहीं है, संतोष जैसा कोई सुख नहीं है, लोभ जैसी कोई बीमारी नहीं है, और दया जैसा कोई पुण्य नहीं है|
वो जिसका ज्ञान बस किताबों तक सीमित है और जिसका धन दूसरों के कब्ज़े मैं है, वो ज़रुरत पड़ने पर ना अपना ज्ञान प्रयोग कर सकता है ना धन|
सेवक को तब परखें जब वह काम ना कर रहा हो, रिश्तेदार को किसी कठिनाई में, मित्र को संकट में, और पत्नी को घोर विपत्ति में|
सारस की तरह एक बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए और अपने उद्देश्य को स्थान की जानकारी, समय और योग्यता के अनुसार प्राप्त करना चाहिए|
अपमानित हो के जीने से अच्छा मरना है मृत्यु तो बस एक क्षण का दुःख देती है, लेकिन अपमान हर दिन जीवन में दुःख लाता है|
चाणक्य Chanakya