चाणक्य का जीवन
आचार्य चाणक्य भारत के महान गौरव है, और उनके इतिहास पर भारत को गर्व है। प्राचीन संस्कृत शास्त्रज्ञों की परंपरा में, आचार्य चणक के पुत्र विष्णुगुप्त-चाणक्य का स्थान विशेष है।आचार्य चाणक्य गुणवान, राजनीति कुशल, आचार और व्यवहार में मर्मज्ञ, कूटनीति के सूक्ष्मदर्शी प्रणेता, और अर्थशास्त्र के विद्वान माने जाते हैं ।
आचार्य चाणक्य का स्वभाव:
चाणक्य स्वभाव से स्वाभिमानी, चारित्र्यवान तथा संयमी, बुद्धि से तीक्ष्ण, इरादे के पक्के, प्रतिभा के धनी, युगदृष्टा और युगसृष्टा थे । कर्तव्य की वेदी पर मन की मधुर भावनाओं की बली देनेवाले वे धैर्यमूर्ति थे ।
आचार्य चाणक्य का व्यक्तित्व शिक्षकों तथा राजनीतिज्ञों के लिए किसी भी काल में तथा किसी भी देश में अनुकरणीय एवं आदर्श है। उनके चरित्र की महानता के पीछे, उनकी कर्मनिष्ठा, अतुलप्रज्ञा और दृढप्रतिज्ञा थे ।
वे मेधा, त्याग, तेजस्विता, दृढता, साहस एवं पुरुषार्थ के प्रतीक हैं । उनके अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र के सिद्धांत अर्वाचीन काल में भी उतने ही उपयुक्त हैं।
आचार्य चाणक्य का समय:
आचार्य चाणक्य का समय ई.स. पूर्व 326 वर्ष का माना जाता है । अपने निवासस्थान पाटलीपुत्र (पट़ना) से तक्षशीला प्रस्थान कर उन्होंने वहाँ विद्या प्राप्त की । अपने प्रौढ़ज्ञान से विद्वानों को प्रसन्न कर वे वहीं पर राजनीति के प्राध्यापक बने । लेकिन उनका जीवन, सदा आत्मनिरिक्षण में मग्न रहता था ।
देश की दुर्व्यवस्था देखकर उनका हृदय अस्वस्थ हो उठता; कलुषित राजनीति और सांप्रदायिक मनोवृत्ति से त्रस्त भारत का पतन उनसे सहन नहीं हो पाता था। अतः अपनी दूरदर्शी सोच से, एक विस्तृत योजना बनाकर, देश को एकसूत्र में बाँधने का असामान्य प्रयास उन्होंने किया ।
भारत के अनेक जनपदों में आचार्य चाणक्य घूमें । जनसामान्य से लेकर, शिक्षकों एवं सम्राटों तक में सोयी हुई राष्ट्र-निष्ठा को उन्होंने जागृत किया । इस राजकीय एवं सांस्कृतिक क्रांति को स्थिर करने, अपने गुणवान और पराक्रमी शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध के सिंहासन पर स्थापित किया । चाणक्य याने स्वार्थत्याग, निर्भीकता, साहस एवं विद्वत्ता की साक्षात् मूरत थे|
मगध के महामंत्री आचार्य चाणक्य:
मगध के महामंत्री होने पर भी वे सामान्य कुटिया में रहते थे । चीन के प्रसिद्ध यात्री फाह्यान ने यह देखकर जब आश्चर्य व्यक्त किया, तब महामंत्री का उत्तर था “जिस देश का महामंत्री (प्रधानमंत्री-प्रमुख) सामान्य कुटिया में रहता है, वहाँ के नागरिक भव्य भवनों में निवास करते हैं; पर जिस देश के मंत्री महालयों में निवास करते हैं, वहाँ की जनता कुटिया में रहती है । राजमहल की अटारियों में, जनता की पीडा का आर्तनाद सुनायी नहीं देता ।”
आचार्य चाणक्य का मानना था कि `बुद्धिर्यस्य बलं तस्य`। वे पुरुषार्थवादी थे; `दैवाधीनं जगत्सर्वम्` इस सिद्धांत को मानने के लिए कदापि तैयार नहीं थे । सार्वजनिन हित और महान ध्येय की पूर्ति में प्रजातंत्र या लोकशिक्षण अनिवार्य है, पर पर्याप्त नहीं ऐसा उनका स्पष्ट मत था। देश के शिक्षक, विद्वान और रक्षक – निःस्पृही, चतुर और साहसी होने चाहिए । स्वजीवन और समाजव्यवहार में उन्नत नीतिमूल्य का आचरण ही श्रेष्ठ है, किंतु स्वार्थ परायण सत्तावान या वित्तवानों से, आवश्यकता पडने पर वज्रकुटिल बनना चाहिए – ऐसा उनका मत था । इसी कारण वे “कौटिल्य” कहलाये ।
चाणक्य नीति दर्पण के अनमोल विचार | Chanakya’s Niti Darpan Quotes:
नीति वर्णन के संस्कृत ग्रंथो में, चाणक्य-नीति दर्पण का महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन को सुखमय एवं ध्येय पूर्ण बनाने के लिए इसमेंअनेक विषयों का वर्णन है, इसमें सूत्रात्मक शैली से सुबोध रूप में प्राप्त होता है। व्यवहार संबंधी सूत्रों के साथ-साथ, राजनीति संबंधी श्लोकों का भी इनमें समावेश होता है। नीति दर्पण से पूर्व हम महान शिक्षक, प्रखर राजनीतिज्ञ एवं अर्थशास्त्रकार के बारे में जानने का प्रयास करें…
- तीनो लोको के स्वामी सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु को नमन करते हुए मै एक राज्य के लिए नीति शास्त्र के सिद्धांतों को कहता हूँ. मै यह सूत्र अनेक शास्त्रों का आधार ले कर कह रहा हूँ।
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जिसके पास धन नहीं है वो गरीब नहीं है, वह तो असल में रहीस है, यदि उसके पास विद्या है. लेकिन जिसके पास विद्या नहीं है वह तो सब प्रकार से निर्धन है|
- एक पंडित भी घोर कष्ट में आ जाता है यदि वह किसी मुर्ख को उपदेश देता है, यदि वह एक दुष्ट पत्नी का पालन-पोषण करता है या किसी दुखी व्यक्ति के साथ अतयंत घनिष्ठ सम्बन्ध बना लेता है|
- भविष्य में आने वाली मुसीबतो के लिए धन एकत्रित करें। ऐसा ना सोचें की धनवान व्यक्ति को मुसीबत कैसी? जब धन साथ छोड़ता है तो संगठित धन भी तेजी से घटने लगता है।
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ऐसे जगह एक दिन भी निवास न करें जहाँ निम्नलिखित पांच ना हो:
- एक धनवान व्यक्ति ,
- 1 ब्राह्मण जो वैदिक शास्त्रों में निपुण हो,
- एक राजा,
- एक नदी,
- और एक चिकित्सक।
चाणक्य नीति स्त्री:
- दुष्ट पत्नी, झूठा मित्र, बदमाश नौकर और सर्प के साथ निवास साक्षात् मृत्यु के समान है।
- व्यक्ति को आने वाली मुसीबतो से निबटने के लिए धन संचय करना चाहिए। उसे धन-सम्पदा त्यागकर भी पत्नी की सुरक्षा करनी चाहिए। लेकिन यदि आत्मा की सुरक्षा की बात आती है तो उसे धन और पत्नी दोनो को तुक्ष्य समझना चाहिए।
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उस व्यक्ति ने धरती पर ही स्वर्ग को पा लिया :
१. जिसका पुत्र आज्ञाकारी है,२. जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुरूप व्यव्हार करती है,३. जिसे अपने धन पर संतोष है।
- मन में सोंचे हुए कार्य को किसी के सामने प्रकट न करें बल्कि मनन पूर्वक उसकी सुरक्षा करते हुए उसे कार्य में परिणत कर दें।
इस दुनिया मे ऐसा किसका घर है जिस पर कोई कलंक नहीं, वह कौन है जो रोग और दुख से मुक्त है.सदा सुख किसको रहता है?
एक दुर्जन और एक सर्प मे यह अंतर है की साप तभी डंख मरेगा जब उसकी जान को खतरा हो लेकिन दुर्जन पग पग पर हानि पहुचने की कोशिश करेगा।
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जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के सामान भयंकर आपत्ति अवं विपत्ति में भी आपनी मर्यादा नहीं बदलते।
- मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के सामान हैं,जो अपने धारदार वचनो से वैसे ही हदय को छलनी करता है जैसे अदृश्य काँटा शारीर में घुसकर छलनी करता है.
- शक्तिशाली लोगों के लिए कौनसा कार्य कठिन है ? व्यापारिओं के लिए कौनसा जगह दूर है, विद्वानों के लिए कोई देश विदेश नहीं है, मधुभाषियों का कोई शत्रु नहीं।