आयुर्वेद पंचकर्म चिकित्सा परिचय:
हमारा शरीर भी यांत्रिक मशीन के तरह काम करता है, सिर्फ फर्क इतना है की यह सजीव है और रखरखाव अपने – आप करता रहता है लेकिन जीवित रहने के लिए हम खान पान करते है और वर्तमान समय में खाना या वातावरण कितना शुद्ध है ये सभी को पता है |
आजकल जो हम खाते है उनमे से 90 % पद्धार्थो में केमिकल या अन्य विजातीय तत्व मिले हुए होते है , जब हम इनका उपयोग करते है तो ये हमारे शारीर में इकट्ठा होते रहते है और कालांतर में जाकर निश्चित ही किसी रोग का कारन बनते है |
अब प्रश्न आता है की इनसे बचे कैसे तो इनसे बचना तो कठिन है लेकिन इन तत्वों को शरीर से बहार निकालना हमारे लिए आसान है और जिस पद्धति से इनको बहार निकाला जा सकता है वह है आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा पद्धति |
पंचकर्म क्यों जरुरी है?
जिस प्रकार एक गंदे कपड़े पर अगर हम रंग चढ़ाना चाहेंगे तो रंग सही तरीके से नही चढ़ेगा लेकिन जब उसी कपड़े को धोकर साफ़ करने के बाद रंग चढ़ावे तो रंग भली प्रकार चढ़ेगा |
यही सिद्धांत हमारे शरीर पर भी लागू होता है | क्योकि दवा का असर उस समय होता है जब हमारा शरीर उसे स्वीकार करे अगर शरीर में पहले से ही गंदगी ( विकृत दोष ) पड़ी है तो दवा अपना असर नहीं करेगी |
आयुर्वेद के ऋषि मुनियों ने इसे पहचान लिया और उन्होंने दवा से पहले शरीर के शोधन को प्राथमिकता दी | यही शोधन चिकित्सा अब पंचकर्म कहलाती है | अत: रोग के मूल नाश के लिए पहले शरीर का शोधन जरुरी होता है और आयुर्वेद में रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए पंचकर्म पद्धति अपनाइ जाती है |
इसे को कोई भी करवा सकता है इसके लिए उसे रोगी होना जरुरी नहीं क्योकि यह शोधन पद्धति है इसलिए हर कोई इसे अपना सकता है| यह बात सदैव स्मरण रखें कि आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान न होकर स्वास्थ्य विज्ञान है |
पंचकर्म विधि:
पंचकर्म दो शब्दों से मिलकर बना है – पञ्च + कर्म | पञ्च मतलब पांच और कर्म से तात्पर्य है कार्य यानि पांच कार्य |
“क्रियते अनेन इति कर्म:” आयुर्वेद में क्रिया या कर्म को चिकित्सा भी कहते है |
पंचकर्म में पांच कर्म किये जाते है जो इस प्रकार है:
1. वमन – उल्टी करवाना
2. विरेचन – दस्त करवाना
3. अनुवासन – शुद्ध घी से एनिमा दिया जाता है
4. निरुह – औषध क्वाथ से एनिमा
5. नश्य – नाक के द्वारा औषधि
पंचकर्म कि प्रक्रिया:
पंचकर्म के तीन चरण:
1. पूर्व कर्म – पाचन / स्नेहन / स्वेदन
2. प्रधान कर्म – पांचो कर्म
3. पश्चात कर्म – संसर्जन कर्म / रसायन कर्म / शमन
पूर्व कर्म (पहला चरण):
जिस प्रकार मलिन वस्त्र पर रंग नहीं चढ़ता , रंग चढाने के लिए पहले उसे साफ़ करना पड़ता है उसी प्रकार पंचकर्म करने से पूर्व शारीर को सुध किया जाता है ताकि पंचकर्म का पूर्ण लाभ हो | पूर्वकर्म में निम्न लिखित कर्म किये जाते है |
पाचन – सबसे पहले पाचन क्रिया ठीक की जाती है क्योकि पाचन ठीक होगा तो ही पंचकर्म ठीक तरीके से होगा स्नेहन – स्नेहन दो प्रकार से किया जाता है |
A. बाह्य स्नेहन – इसमें औषधि तेल से शरीर की मालिस की जाती है |
B. अभ्यंतर स्नेहन – इसमें शुद्ध घी या तेल रोगी को पिलाया जाता है |
स्वेदन – इसमें औषधियों की भाप से शरीर में पसीना लाया जाता है जिससे की शरीर में इकठ्ठा हुए मल छूटकर आमाशय में एकत्रित हो जाए |
प्रधान कर्म (मध्य चरण):
- वमन – इस कर्म में निपुण चिकित्सक की देख – रख में औषधियों के द्वारा वमन ( उलटी ) करवाई जाती है | जिससे की अमाशय में इकट्ठी हुई गंदगिया वमन के द्वारा शारीर से बहार निकल जावे
- विरेचन – निपुण चिकित्सक की देख-रेख में औषधियों के द्वारा रोगी को दस्त लगवाये जाते है , जिसके कारन गुदा मार्ग में स्थित दोष शारीर से बहार निकलते है |
- अनुवाशन – इस कर्म में शारीर में औषधी घी या तेल से एनिमा लगाया जाता है | इसका कार्य शरीर को उर्जा देना और गंदगी को शारीर से बहार निकलना होता है
- निरुह – इसमें भी शरीर में एनिमा दिया जाता है जो औषधी काढ़े रूप में होता है और इसका कार्य भी शरीर में स्थित दोषों को बाहर निकालना है |
- नश्य – साइनस, एलर्जी आदि रोगों में नाक के द्वारा औषधि दी जाती है | यह औषधि घी , तेल या अन्य किसी रूप में हो सकती है |
पश्चात कर्म (अंतिम चरण):
प्रधान कर्म के बाद किया जाने वाला कार्य पश्चात कर्म कहलाता है |
- संसर्जन कर्म – पूर्वकर्म और प्रधान कर्म के बाद शारीर शुद्ध हो जाता है उसे बनाए रखने के लिए संसर्जन कर्म किया जाता है |
- रसायन कर्म – इस कर्म में व्यक्ति को Rejuvenation अर्थात शरीर की कायाकल्प करने के लिए , व्यक्ति की प्रकृति और रोग के अनुसार रसायन का सेवन करवाया जाता है |
- शमन कर्म – इसमें रोगी के रोग का पूर्ण रूप से रोग का शमन कर के उसे सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार कर दिया जाता है |
पंचकर्म चिकित्सा के लाभ | Panchakarma Benefits:
- शरीर पुष्ट व बलवान होता है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
- शरीर की क्रियाओं का संतुलन पुन: लौट आता है।
- रक्त शुद्घि से त्वचा कांतिमय होती है।
- इंद्रियों और मन को शांति मिलती है।
- दीर्घायु प्राप्त होती है और बुढ़ापा देर से आता है।
- रक्त संचार बढ़ता है।
- मानसिक तनाव में कारगर है।
- अतिरिक्त चर्बी को हटाकर वजन कम करता है।
- आर्थराइटिस, मधुमेह, तनाव, गठिया, लकवा आदि रोगों में राहत मिलती है।
- स्मरण शक्ति बढ़ती है।
बहुत अच्छा लिखके जो अच्छे से समझ में आ रहा
है