विभीतकी (बहेड़ा) का परिचय, उपयोग एवं लाभ
Vibhitaki Information, Uses & Benefits in Hindi
विभीतकी (बहेड़ा) का लैटिन नाम: टर्मिनेलिया बेलेरिका (Terminalia bellirica)
हिन्दी नाम: बहेड़ा
संस्कृत नाम: विभीतकी या विभीतक
अंग्रेजी नाम: बेलेरिक मिरोबोलम
विभीतकी (बहेड़ा) का रासायनिक संघटन: बहेड़ा के फल में गैलोटेनिक एसिड, रंजकद्रव्य और रेजिन होते हैं। बीजों में हरापन लिये पीले रंग का तेल 25 प्रतिशत होता है।
विभीतकी (बहेड़ा) का परिचय:
इसके पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लंबे होते हैं। विभीतकी (बहेड़ा) के पत्ते बरगद के पत्तों से मिलते-जुलते, 3-6 इंच लम्बे और 2-3 इंच चौड़े, छोटी टहनियों के अन्त में लगे रहते हैं।
विभीतकी (बहेड़ा) के फूल छोटे, पीलापन लिये लगते हैं। बहेड़ा के फल अण्डाकार, कत्थई रंग के होते हैं। फलों में एक बीज रहता है।
भारत में सर्वत्र पाया जाता है। इसके पेड़ पहाडों और ऊंची भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी छाया स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है।
विभीतकी (बहेड़ा) स्वाद में कसैला, पचने पर मधुर तथा रूखा, हल्का तथा गर्म है।
विभीतकी (बहेड़ा) का उपयोग एवं लाभ:
अतिसार (दस्त) में लाभ:
विभीतकी (बहेड़ा) के फलों को जलाकर उसकी राख को इकट्ठा कर लेते हैं। इसमें एक चौथाई मात्रा में कालानमक मिलाकर एक चम्मच दिन में दो-तीन बार लेने से अतिसार के रोग में लाभ मिलता है।
सूजन में लाभ:
इसके फल की मज्जा एवं छाल का लेप करने से सूजन कम हो जाती है।
हाथ-पैर की जलन में लाभ:
विभीतकी (बहेड़ा) की मींगी (बीज) पानी के साथ पीसकर हाथों और पैरों में लगाने से जलन में आराम मिलता है।
कफ में लाभ:
विभीतकी (बहेड़ा) के पत्ते और उससे दुगुनी चीनी का काढ़ा बनाकर पीने से कफरोग दूर हो जाता है।
बहेड़ा की छाल का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से खांसी मिट जाती है और बलगम आसानी से निकल जाता है।
बालों के लिए फायदेमंद:
इसके फल के चूर्ण को पूरी रात पानी में डाल कर रखें और सुबह उसी पानी से बालों को धो लें। बालों का गिरना बंद हो जाता है और जड़ें मजबूत हो जाती है।
आंखों की रोशनी में लाभ:
विभीतकी (बहेड़ा) का छिलका और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच सुबह-शाम गर्म पानी से लेने से दो-तीन सप्ताह में आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।
श्वास या दमा में लाभ:
इसका और धतूरे के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते हैं इसे चिलम या हुक्के में भरकर पीने से सांस और दमा के रोग में आराम मिलता है।
विभीतकी (बहेड़ा) के छिलकों का चूर्ण बनाकर बकरी के दूध में पकायें और ठण्डा होने पर शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार रोगी को चटाने से सांस की बीमारी दूर हो जाती है।
मुँहासे में लाभ:
रोजाना विभीतकी (बहेड़ा) के गिरी का तेल मुहांसों पर लगाने से मुँहासे ठीक हो जाते हैं।