शालभंजिका: भारतीय सौन्दर्य की प्रतिमान
शालभंजिका पत्थरों से बनी एक महिला की दुर्लभ व विशिष्ट संरचना है जिसे हम हज़ारों बार देख भी चुके होंगे, जो मादक मुस्कान में त्रिभंग मुद्रा (शरीर तीन हिस्सों में मुडा) में खड़ी होती है। भारत में बहुतायत पाई गई यह मूर्तियां 8वीं से 9वीं शताब्दी के बीच की है।
इस उत्कृष्ट मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि यह जंगल की देवी की है। शालभंजिका शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका अर्थ होता है ‘साल वृक्ष की टहनी को तोड़ना।’
इस मूर्ति की खूबसूरती बेजोड़ हैं। जंगल की देवी समझी जाने वाली यह महिला अपने शरीर को तीन तरह से मोड़कर दुर्लभ अवस्था में है। शरीर में इतने खिचाव के बावजूद भी उनके चेहरे पर सुंदर भाव दिखाई देते हैं। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की यह शालभंजिका भारत के सनातन संस्कृति में सौंदर्य के नारी सौन्दर्य का प्रतिमान है|
शालभंजिका, मातृत्व की देवी:
शालभंजिका को मातृत्व की देवी भी माना जाता है | संभव भी है की मातृत्व की देवी का यह स्वरुप प्रसव के समय का हो जिसमें एक आनंददायक मातृप्रेम की पीड़ा में त्रिभंगी मुद्रा बन गई हो और शाल के वृक्ष की लताओं को कस कर पकड़ भींचने के कारण वह टूट जाती हों …….तभी चित्रकार ने इसे शालभंजिका कहा हो |
शालभंजिका का भारतीय संस्कृति में कितना महत्त्व है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की इस स्वरूप को बुद्धिज़्म में माया के बुद्ध के जन्म के दृश्य से जोड़ दिया गया |
शालभंजिका का बौद्ध धर्म से घनिष्ठ संबंध:
कुछ आलोचक कहते हैं कि शालभंजिका का बौद्ध धर्म से घनिष्ठ संबंध है। इस मत का आधार यह है कि रानी माया ने इस मुद्रा में गौतम बुद्ध को एक अशोक वृक्ष के नीचे जन्म दिया था। कुछ आलोचकों का यह भी कहना है कि शालभंजिका एक पुरानी देवी है, जिसका संबंध प्रजनन से है। शालभंजिका का छोटा रूप हिंडोला तोरण पर भी देखा जा सकता है।
भारतीय संस्कृति में प्रसूता को शुभ माना जाता है शायद यही कारण है की शालभंजिका को किलों के तोरण द्वार पर भी प्रमुखता से जगह मिली |