गूलर (उडुम्बर) के औषधीय गुण
गूलर का पत्ता, फल, एवं जड़ का उपयोग
#गूलर (उडुम्बर) का वैज्ञानिक नाम: फाइकस ग्लोमेराटा (ficus Glomerata)
संस्कृत नाम: उदुम्बर
हिंदी नाम: गुलर
अंग्रेजी नाम: कंट्री फिग (Country Fig), क्लस्टर फिग (Clusterfig)
गूलर का गुण:
गूलर शीतल, गर्भसंधानकारक, व्रणरोपक, रूक्ष, कसैला, भारी, मधुर, अस्थिसंधान कारक एवं वर्ण को उज्ज्वल करने वाला है कफपित्त, अतिसार, रक्त विकार नाशक, रक्तप्रदर, मधुमेह, रंग रोग, नेत्र रोग नाशक, बलवर्धक अस्थि जोड़ने वाला तथा योनि रोग को नष्ट करने वाला है।
इसके फल में कार्बोहाइडेृड 49 %, अलब्युमिनायड 7.4 %, वसा 5.6 %, रंजक द्रव्य 8.5 %, भस्म 6.5 %, आद्रता 13.6 % तथा कम मात्रा में फास्फोरस व सिलिका होता है | इसकी छाल में 14 %, टैनिन और दूध में 4 से 7.4 % तक रबड़ होता हैं |
गूलर (उडुम्बर) के वृक्ष का परिचय:
#गूलर का वृक्ष सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। यह नदी−नालों के किनारे एवं दलदली स्थानों पर उगता है।
#गूलर फिकस कुल का एक विशाल वृक्ष है।
गुलर का वृक्ष 20 से 40 फुट ऊँचा होता है | तना मोटा, लम्बा, अकसर टेढ़ापन लिए होता हैं |
छाल लाल व मटमैली होती है | पत्ते 3 से 5 इंच लम्बे डेढ़ से तीन इंच चौड़े, नोकीले, चिकने और चमकीले होते है |
इसके फूल दिखाई नहीं देते हैं। फल गोल, गुच्छों में लगते हैं।
कच्चा फल छोटा हरा होता है पकने पर फल मीठे, मुलायम तथा छोटे−छोटे दानों से युक्त होता है। इसका फल देखने में अंजीर के फल जैसा लगता है।
इसके तने से सफेद-सफेद दूध निकलता है।
गूलर का पत्ता, फल, एवं जड़ का उपयोग और औषधीय गुण:
श्वेत प्रदर रोग में लाभ:
10-15 ग्राम गूलर की छाल को पीसकर, 250 मिलीलीटर पानी में डालकर पकाएं। पकने के बाद 125 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर इसे छान लें और इसमें मिश्री व लगभग 2 ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें तथा भोजन में इसके कच्चे फलों का काढ़ा बनाकर सेवन करें श्वेत प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
जिन महिलाओं को श्वेत प्रदर की समस्या है उन्हें रोजाना दिन में 3-4 बार एक गुलर के पके फल का सेवन करना चाहिए |
पौरुष शक्ति की वृद्धि:
4 से 6 ग्राम गूलर के फल का चूर्ण और बिदारी कन्द का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर मिश्री और घी मिले हुए दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पौरुष शक्ति की वृद्धि होती है व बाजीकरण की शक्ति बढ़ जाती है।
बवासीर में लाभ:
कच्चे गूलर के फलों की सब्जी कुछ दिनों तक नियमित खाने से खूनी बवासीर तथा दस्त संबंधी व्याधियां समाप्त हो जाती हैं |
खूनी बवासीर की समस्या होने पर गूलर के फलों को सुखाकर पीस लें। फिर इसमें चीनी मिलाकर सेवन करें। इससे खूनी बवासीर जड़ से ख़तम हो जाता है।
10 से 15 ग्राम गूलर के कोमल पत्तों को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। 250 ग्राम गाय के दूध की दही में थोड़ा सा सेंधानमक तथा इस चूर्ण को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खूनी बवासीर के रोग में लाभ मिलता है।
मधुमेह के उपचार में लाभ:
एक चम्मच गुलर के फलों के चूर्ण को एक कप पानी के साथ दोनों समय के भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से पेशाब में चीनी आना बंद हो जाती है और रक्त की शकरा भी नियंत्रित होती हैं |
साथ ही कच्चे फलों की सब्जी नियमित रूप से खाते रहना अधिक गुणकारी है |
मुंह के छाले में उपयोग:
मुंह के छाले हों तो गूलर के पत्तों या #छाल का काढ़ा मुंह में भरकर कुछ देर रखना चाहिए। इससे फायदा होता है।
अतिसार (दस्त) में लाभ:
गूलर की 4-5 बूंद दूध को बताशे में डालकर दिन में 3 बार सेवन करने से अतिसार के रोग में लाभ मिलता है।
गूलर की 10 ग्राम पत्तियां को बारीक पीसकर 50 मिलीलीटर पानी में डालकर रोगी को पिलाने से सभी प्रकार के दस्त समाप्त हो जाते हैं।
फोड़ा-फुंसी में लाभ:
फोड़े पर गूलर का दूध लगाने से फोड़ा बैठ जाता है और पके फोड़े जल्दी से पककर फूट जाते हैं |
रक्तस्त्राव में लाभ:
योनी से, नाक से, मुह से, गुदा से होने वाले रक्तस्त्राव में इसके दूध की 15 बूंदे एक चम्मच पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करना चाहिए |
नेत्र विकार में लाभ:
नेत्र विकारों जैसे आंखें लाल होना, आंखों में पानी आना, जलन होना आदि के उपचार में भी गूलर उपयोगी है।
इसके लिए गूलर के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसे साफ और महीन कपड़े से छान लें। ठंडा होने पर इसकी दो−दो बूंद दिन में तीन बार आंखों में डालें। इससे नेत्र ज्योति भी बढ़ती है।
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