दया पर श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Slokas on Daya (Mercy) in Hindi

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दया पर श्लोक हिंदी अर्थ सहित

संस्कृत वाङ्गमय में जीव दया पर संस्कृत श्लोक (Mercy Slokas in Sanskrit) बहुतायत मिलते हैं। बेहतरीन संस्कृत श्लोकों (best sanskrit shlok)  के संकलन में दया पर श्लोक हिंदी अर्थ सहित यहाँ दिया जा रहा है जो पाठकों को लाभकारी सिद्ध होगा।

आप सभी यहाँ हिंदी अर्थ सहित दिए गए दया श्लोकों (daya shlok) को पढ़े और जीवन में आत्मसात करें!

 

न सा दीक्षा न सा भिक्षा न तद्दानं न तत्तपः ।
न तद् ध्यानं न तद् मौनं दया यत्र न विद्यते ॥

दया के बगैर दीक्षा, भिक्षा, दान, तप, ध्यान, और मौन सब निरर्थक है ।

दयां विना देव गुरुक्रमार्चाः
तपांसि सर्वेन्द्रिययन्त्रणानि
दानानि शास्त्राध्ययनानि सर्वं
सैन्यं गतस्वामि यथा तथैव ॥

देव और गुरुपूजा, तप, सर्वइंद्रियदमन, दान और शास्त्राध्ययन – ये सब क्रिया दया के बगैर वैसे हैं, जैसी कि सेनापति बगैर का सैन्य ।

संसारे मानुष्यं सारं मानुष्ये च कौलीन्यम् ।
कौलिन्ये धर्मित्वं धर्मित्वे चापि सदयत्वम् ॥

संसार में मनुष्यत्व, मनुष्यत्व में खानदानी, खानदानी में धर्मिष्टत्व, और धर्मिष्टत्व में सदयत्व सार (रुप) है ।

सर्वे वेदा न तत् कुर्युः सर्वे यज्ञाश्च भारत ।
सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च तत् कुर्यात् प्राणिनां दया ॥

हे भारत ! सब वेद, सब यज्ञ, सब तीर्थ, सब अभिषेक – जो नहि कर सकता है, वह (भी) प्राणियों पर दया तो कर हि सकता है ।

 

जीव दया पर श्लोक

अहिंसा लक्षणो धर्मोऽधर्मश्च प्राणिनां वधः ।
तस्मात् धर्मार्थिभिः लोकैः कर्तव्या प्राणिनां दया ॥

धर्म का लक्षण अहिंसा है, और प्राणियों का वध अधर्म है । अर्थात् धर्म की इच्छावाले ने प्राणियों पर दया करनी चाहिए ।

धर्मो जीवदयातुल्यो न क्वापि जगतीतले ।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन कार्या जीवदयाऽङ्गिभिः ॥

इस दुनिया में जीव दया के तुल्य धर्म इतर कहीं भी नहि । अर्थात् आपने सर्व प्रयत्न द्वारा जीव दया करनी चाहिए ।

दयाहीनं निष्फलं स्यान्नास्ति धर्मस्तु तत्र हि ।
एते वेदा अवेदाः स्यु र्दया यत्र न विद्यते ॥

दयाहीन काम निष्फल है, उस में धर्म नहि । जहाँ दया न हो, वहाँ वेद भी अवेद बनते हैं ।

दयाङ्गना सदा सेव्या सर्वकामफलप्रदा ।
सेवितासौ करोत्याशु मानसं करुणामयम् ॥

सब इच्छित फल देनेवाली दयांगना का सेवन करना चाहिए । यदि सेवन किया जाय तो तुरंत हि वह मन को करुणामय बनाता है ।

न च विद्यासमो बन्धुः न च व्याधिसमो रिपुः ।
न चापत्यसमो स्नेहः न च धर्मो दयापरः ॥

विद्या जैसा बंधु नहि, व्याधि जैसा कोई शत्रु नहि, पुत्र जैसा स्नेह नहि, और दया से श्रेष्ठ कोई धर्म नहि

Sanskrit Slokas on Daya (Mercy) in Hindi

लावण्यरहितं रुपं विद्यया वर्जितं वपुः ।
जलत्यक्तं सरो भाति नैव धर्मो दयां विना ॥

लावण्यरहित रुप, विद्यारहित शरीर, जलरहित तालाब शोभा नहि देते । उसी प्रकार दयारहित धर्म भी शोभा नहि देता ।

सत्यं तीर्थं क्षमा तीर्थं तीर्थंमिन्द्रियनिग्रहः ।
सर्वभूतदया तीर्थं सर्वत्रार्जवमेवच ॥

सत्य, क्षमा, इंद्रियनिग्रह, सर्वत्र सरलता, और सब प्राणियों के लिए दया – ये तीर्थरुप है ।

परस्मिन् बन्धुवर्गे वा मित्रे द्वेष्ये रिपौ तथा ।
आत्मवद्वर्तितव्यं हि दयैषा परिकीर्तिता ॥

परायों के साथ, वैसे हि अपनों के साथ, मित्र, द्वेष्य (जिनका द्वेष है उनसे), और शत्रु के साथ खुद से करते हैं वैसा वर्तन करना चाहिए । इसी को दया कह्ते हैं ।

क्षान्ति तुल्यं तपो नास्ति सन्तोषान्न सुखं परम् ।
नास्ति तृष्णा समो व्याधिः न च धर्मो दयापरः ॥

क्षमा जैसा अन्य तप नहि, संतोष जैसा अन्य सुख नहि, तृष्णा जैसा अन्य रोग नहि, दया जैसा अन्य कोई धर्म नहि ।


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Shivesh Pratap

Hello, My name is Shivesh Pratap. I am an Author, IIM Calcutta Alumnus, Management Consultant & Literature Enthusiast. The aim of my website ShiveshPratap.com is to spread the positivity among people by the good ideas, motivational thoughts, Sanskrit shlokas. Hope you love to visit this website!

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