पर्यावरण वृक्षारोपण पर संस्कृत श्लोक with Hindi Meaning
Sanskrit slokas on environment with meaning in Hindi
श्रीमद्भागवत में श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को वृक्षों का महत्त्व बताते हुये कहते हैं;
पश्यैतान् महाभागान् पराबैंकान्तजीवितान्।
वातवर्षातपहिमान् सहन्तरे वारयन्ति नः॥
वृक्ष इतने महान् होते हैं कि परोपकार के लिये ही जीते हैं। ये आँधी, वर्षा और शीत को स्वयं सहन करते हैं।
अहो एषां वरं जन्म सर्वप्राण्युपजीवनम्।
सुजनस्यैव येषां वै विमुखा यान्ति नार्थिनः॥
इनका जन्म बहुत अच्छा है क्योंकि इन्हीं के कारण सभी प्राणी जीवित हैं। जिस प्रकार किसी सज्जन के सामने से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाते उसी प्रकार इन वृक्षों के पास से भी कोई खाली हाथ नहीं जाता।
पुत्रपुष्यफलच्छाया मूलवल्कलदारुभिः।
गन्धनिर्यासभस्मास्थितौस्मैः कामान् वितन्वते॥
ये हमें पत्र, पुष्प, फल, छाया, मूल, बल्कल, इमारती और जलाऊ लकड़ी, सुगंध, राख, गुठली और अंकुर प्रदान करके हमारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
एतावज्जन्मसाफल्यं देहिनामिह देहिषु।
प्राणैरर्थधिया वाचा श्रेय एवाचरेत् सहा॥’
हर प्राणी का कर्तव्य है कि वह अपने प्राण, धन, बुद्धि तथा वाणी से अन्यों के लाभ हेतु कल्याणकारी कर्म करे।
sanskrit shlok on nature
ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥
इस वैश्व गति में, इस अत्यन्त गतिशील समष्टि-जगत् में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् (दृश्यमान प्रकृति/ पर्यावरण) है-यह सबका सब ईश्वर के आवास के लिए है। तुझे इसका उपभोग त्यागमय स्वरूप में करना चाहिये (अर्थात जितनी आवश्यकता हो उतना ही उपभोग करो) ; किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि मत डाल।
अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीवनम् ।
धन्या महीरूहा येभ्यो निराशां यान्ति नार्थिन: ॥
“सब प्राणियों पर उपकार करने वाले वृक्षों का जन्म श्रेष्ठ है। ये वृक्ष धन्य हैं कि जिनके पास से याचक कभी निराश नहीँ लौटते।
प्रकृति पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
पुष्प-पत्र-फलच्छाया. मूलवल्कलदारुभिः।
धन्या महीरुहा येषां. विमुखा यान्ति नार्थिनः ॥
वे वृक्ष धन्य हैं जिनके पास से याचक फूल, पत्ते, फल, छाया, जड़, छाल और लकड़ी से लाभान्वित होते हुए कभी भी निराश नहीं लौटते।
दश कूप समा वापी, दशवापी समोहद्रः।
दशहृद समः पुत्रो, दशपुत्रो समो द्रुमः।
दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है। मत्स्य पुराण
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥
परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है।
छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे ।
फलान्यपि परार्थाय वृक्षाः सत्पुषा ईव ॥
दूसरे को छाँव देता है, खुद धूप में खडा रहता है, फल भी दूसरों के लिए होते हैं; सचमुच वृक्ष सत्पुरुष जैसे होते हैं।
पर्यावरण पर संस्कृत श्लोक
तडागकृत् वृक्षरोपी इष्टयज्ञश्च यो द्विजः ।
एते स्वर्गे महीयन्ते ये चान्ये सत्यवादिनः ॥
(महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय 58, श्लोक 32)
तालाब बनवाने, वृक्षरोपण करने, अैर यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले द्विज को स्वर्ग में महत्ता दी जाती है; इसके अतिरिक्त सत्य बोलने वालों को भी महत्व मिलता है।
नाप्सु मूत्रं पुरीषं वाष्ठीवनं वा समुत्सृजेत्।
अमेध्यमलिप्तमन्यद्वा लोहतं वा विषाणि वा।
जल में मल मूत्र, कूड़ा, रक्त तथा विष आदि नहीं बहाना चाहिये। इससे पानी विषाक्त हो जाता है और पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव दिखाई देता है। इससे मनुष्य तथा अन्य जीवों को स्वास्थ्य भी खराब होता है। मनु स्मृति
चेष्टा वायुः खमाकाशमूष्माग्निः सलिलं द्रवः।
पृथिवी चात्र सङ्कातः शरीरं पाञ्चभौतिकम्॥
महर्षि भृगु कहते हैं कि इन वृक्षों के शरीर में चेष्टा अर्थात् गतिशीलता वायु का रूप है, खोखलापन आकाश का रूप है, गर्मी अग्नि का रूप है, तरल पदार्थ सलिल का रूप है, ठोसपन पृथ्वी का रूप है। इस प्रकार (इन वृक्षों का यह) शरीर पाँच महाभूतों (वायु, आकाश, अग्नि, जल और पृथ्वी तत्त्वों) से बना है।
पुष्पिताः फलवन्तश्च तर्पयन्तीह मानवान् ।
वृक्षदं पुत्रवत् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च ॥
फलों और फूलों वाले वृक्ष मनुष्यों को तृप्त करते हैं । वृक्ष देने वाले अर्थात् समाजहित में वृक्षरोपण करने वाले व्यक्ति का परलोक में तारण भी वृक्ष करते हैं । महाभारत
तस्मात् तडागे सद्वृक्षा रोप्याः श्रेयोऽर्थिना सदा ।
पुत्रवत् परिपाल्याश्च पुत्रास्ते धर्मतः स्मृताः ॥
इसलिए श्रेयस् यानी कल्याण की इच्छा रखने वाले मनुष्य को चाहिए कि वह तालाब के पास अच्छे-अच्छे पेड़ लगाए और उनका पुत्र की भांति पालन करे। वास्तव में धर्मानुसार वृक्षों को पुत्र ही माना गया है ।
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Apna kaam kar paagal