भगवान महावीर के अनमोल वचन | Lord Mahavira Quotes Preaching in Hindi

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भगवान महावीर के अनमोल वचन उपदेश सिद्धांत
Lord Mahavira Quotes Preaching in Hindi

नाम: भगवान् महावीर

अन्य नाम: वीर, अतिवीर, वर्धमान, सन्मति

जन्म: 599 BC कुंडलग्राम, वैशाली के निकट (बिहार)

पिता का नाम: राजा सिद्धार्थ

माता का नाम: त्रिशला देवी

धर्म: जैन मत

मृत्यु: 527 BC पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार

भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर है।

 

महावीर स्वामी की दीक्षा:

प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है आनंद बाहर से नहीं आता।

सभी अज्ञानी व्यक्ति पीड़ाएं पैदा करते हैं। भ्रमित होने के बाद, वे इस अनन्त दुनिया में दुःखों का उत्पादन और पुनरुत्थान करते हैं।

केवल वही विज्ञान महान और सभी विज्ञानों में श्रेष्ठ है, जिसका अध्यन मनुष्य को सभी प्रकार के दुखों से मुक्त कर देता है।

सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।

एक व्यक्ति जलते हुए जंगल के मध्य में एक ऊँचे वृक्ष पर बैठा है वह सभी जीवित प्राणियों को मरते हुए देखता है लेकिन वह यह नहीं समझता की जल्द ही उसका भी यही हस्र होने वाला है वह आदमी मूर्ख है।

अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।

खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।

आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है।

क्या तुम लोहे की धधकती छड़ सिर्फ इसलिए अपने हाथ में पकड़ सकते हो क्योंकि कोई तुम्हे ऐसा करना चाहता है ? तब , क्या तुम्हारे लिए ये सही होगा कि तुम सिर्फ अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दूसरों से ऐसा करने को कहो। यदि तुम अपने शरीर या दिमाग पर दूसरों के शब्दों या कृत्यों द्वारा  चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते हो तो तुम्हे दूसरों के साथ अपनों शब्दों  या कृत्यों द्वारा ऐसा करने का क्या अधिकार है ?

आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है। असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं , वो शत्रु हैं क्रोध , घमंड , लालच ,आसक्ति और नफरत।

स्वयं से लड़ो , बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना ? वह जो स्वयम पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।

 

महावीर स्वामी उपदेश:

एक जीवित शरीर केवल अंगों और मांस का एकीकरण नहीं है, बल्कि यह आत्मा का निवास है जो संभावित रूप से परिपूर्ण धारणा (अनंत-दर्शन), संपूर्ण ज्ञान (अनंत-ज्ञान), परिपूर्ण शक्ति (अनंत-वीर्य) और परिपूर्ण आनंद (अनंत-सुख) है ।

हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो घृणा से विनाश होता है।

सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं।

जिस प्रकार धागे से बंधी (ससुत्र) सुई खो जाने से सुरक्षित है, उसी प्रकार स्व-अध्ययन (ससुत्र) में लगा व्यक्ति खो नहीं सकता है।

जो लोग जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य से अनजान हैं वे व्रत रखने और धार्मिक आचरण के नियम मानने और ब्रह्मचर्य और ताप का पालन करने के बावजूद निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे।

जिस प्रकार आप दुःख पसंद नहीं करते उसी तरह और लोग भी इसे पसंद नहीं करते। ये जानकर, आपको उनके साथ वो नहीं करना चाहिए जो आप उन्हें आपके साथ नहीं करने देना चाहते।

अज्ञानी कर्म का प्रभाव ख़त्म करने के लिए लाखों जन्म लेता है जबकि आध्यात्मिक ज्ञान रखने और अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति एक क्षण में उसे ख़त्म कर देता है।

एक सच्चा इंसान उतना ही विश्वसनीय है जितनी माँ, उतना ही आदरणीय है जितना गुरु और उतना ही परमप्रिय है जितना ज्ञान रखने वाला व्यक्ति।

जो रातें चली गयी हैं वे फिर कभी नहीं आएँगी वे अधर्मी लोगों द्वारा बर्बाद कर दी गयी हैं।

जीतने पर गर्व ना करें ना ही हारने पर दुःख करें।

मुझे समता को प्राप्त करने के लिए, अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दुख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें।

केवल वह व्यक्ति जो भय को पार कर चुका है, समता को अनुभव कर सकता है।

जो सुख और दुःख के बीच में समनिहित रहता है वह एक श्रमण है, शुद्ध चेतना की अवस्था में रहने वाला।

हे स्व! सत्य का अभ्यास करो और कुछ भी नहीं बस सत्य का।

 

भगवान महावीर के सिद्धांत:

सत्य के प्रकाश से प्रबुद्ध हो, बुद्धिमान व्यक्ति मृत्यु से ऊपर उठ जाता है।

केवल सत्य ही इस दुनिया का सार है।

किसी को तब तक नहीं बोलना चाहिए जब तक उसे ऐसे करने के लिए कहा न जाय। उसे दूसरों की बातचीत में व्यवधान नहीं डालना चाहिए।

किसी को चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही छल-कपट में लिप्त होना चाहिए।

वाणी के अनुशासन में असत्य बोलने से बचना और मौन का पालन करना शामिल है।

साधक ऐसे शब्द बोलता है जो नपे-तुले हों और सभी जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी हों।

भिक्षुक को उस पर नाराज़ नहीं होना चाहिए जो उसके साथ दुर्व्यवहार करता है। अन्यथा वह एक अज्ञानी व्यक्ति की तरह होगा इसलिए उसे क्रोधित नहीं होना चाहिए।

जैसे कि हर कोई जलती हुई आग से दूर रहता है, इसी प्रकार बुराइयां एक प्रबुद्ध व्यक्ति से दूर रहती हैं।

जन्म का मृत्यु द्वारा, नौजवानी का बुढापे द्वारा और भाग्य का दुर्भाग्य द्वारा स्वागत किया जाता है। इस प्रकार इस दुनिया में सब कुछ क्षणिक है।

साहसी हो या कायर दोनों को को मरना ही है। जब मृत्यु दोनों के लिए अपरिहार्य है, तो मुस्कराते हुए और धैर्य के साथ मौत का स्वागत क्यों नहीं किया जाना चाहिए?

जैसे एक कछुआ अपने पैर शरीर के अन्दर वापस ले लेता है, उसी तरह एक वीर अपना मन सभी पापों से हटा स्वयं में लगा लेता है।

प्रबुद्ध व्यक्ति को यह विचार करना चाहिए कि उसकी आत्मा असीम उर्जा से संपन्न है।

 

भगवान महावीर के अनमोल वचन:

केवल वही व्यक्ति सही निर्णय ले सकता है, जिसकी आत्मा बंधन और विरक्ति की यातना से संतप्त ना हो।

किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को ना पहचानना है और यह केवल आत्म ज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है।

शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है।

भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है।

प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है आनंद बाहर से नहीं आता।


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Shweta Pratap

I am a defense geek

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