ब्रह्मचारी गुरु का आश्रम:
एक चेला जो ऐसे गुरू का चेला था जिसके आश्रम में स्त्रियों का प्रवेश निषेध या यूँ कहूँ कि पूरी तरह प्रतिबंधित था।
एक दिन गुरू जिस गाँव के निकट जंगल में रहता था उस गाँव में कोई बीमारी फैल गई थी। गाँव के लोगों ने गुरू से प्रार्थना की कि किसी तरह का कोई उपाय हो तो करें ताकि गाँव में फिर से ख़ुशहाली आ जाए।
तब गुरू ने एक अनुष्ठान करने का फ़ैसला किया जिसके तहत गाँव के लोगों को अपने घरों में ही रहने के लिये कहा गया । तथा गुरू अपने दूसरे पारंगत शिष्यों के साथ अनुष्ठान करने में लग गया। दवाई व हवन सामग्री तैयार होने लगी।
गृहस्थों के ग्रामीण जीवन में ब्रह्मचारी शिष्य:
इस कारण वे लोग जो गुरू व उसके शिष्यों के लिये भोजन का प्रबंध करते थे वे गाँव में ही रुक गए। इसलिये गुरू ने अपने सबसे छोटे चेले को भेजा गाँव में भिक्षा लेने के लिये। और कहा कि ये रास्ता सीधा गाँव में जाता है। और गाँव में जाकर हमारे लिये पर्याप्त भोजन लेकर आओ।
उस चेले ने जीवन में पहले कभी किसी स्त्री को नहीं देखा था उसका जन्म होते ही उसके माता पिता ने उसे गुरू की सेवा में भेंट कर दिया था ।
चेला गाँव की ओर चला पड़ा एक बड़े झोले के साथ व सहारे के लिये लाठी लेकर। गाँव में पहुँच कर उसने एक घर के बाहर भिक्षा के लिए आवाज़ लगाई ।
बाल ब्रह्मचारी एवं युवा लड़की:
घर के भीतर एक महिला ने अपनी पुत्री को कहा कि जाओ बाहर कोई साधू आया है उसे कुछ रोटी देकर आओ। पुत्री अपनी यूवावस्था में थी। जब वह भोजन लेकर उस किशोर चेले के पास गई तो चेले ने देखा कि ये कैसा पुरूष है जिसका सीना इतना उभरा हुआ क्यों है। क्योंकि उसने पहले कभी स्त्री को नहीं देखा था तो उसने सोचा शायद यही बीमारी है क्योंकि इतनी क़द काठी होने के बाद भी न तो मूँछें हैं न दाढ़ी है।
तो चेले ने जिज्ञासा कारण रोटी देने आई लड़की के स्तनों को छू कर देखा। जिसे छूते ही वो लड़की चिल्लाने लगी और दौड़ कर अपनी माँ को बुला कर लाई। जब चेले ने उसकी माता को देखा और उसकी आवाज़ सुनी तो दंग रह गया कि ये तो बहुत ही भयानक बीमारी है। लेकिन लड़की की माँ उस चेले पर लगी भली बुरी बातें कहने कि कैसा निर्लज्ज है साधूँ के भेष में भेड़िया है तू। तुझे शर्म नहीं आती जो मेरी पुत्री को छेड़ रहा है।
बालब्रह्मचारी का पवित्र मन:
इतना सुनने पर चेले ने पूछा कि क्या इस गाँव में जो बीमारी फैली हुई है ये उसी के कारण आपके शरीर में ये बदलाव हुए हैं । क्या उसी के कारण तुम्हारे सीने इतने बड़े हो गए हैं और और तुम्हारी आवाज़ पतली हो गई है, साथ में दाढ़ी और मूँछ भी झड़ गई हैं। मैं तो इसी जिज्ञासा के कारण इसे छू कर देख रहा था।
इतना सुन कर महिला ने उसे कहा कि लड़की को छेड़ने के लिए मेरा पति तुम्हें बहुत कठोर दंड देगा अगर उसे पता चला। इसलिये जा भाग यहाँ से तू बड़ा ही कोमल है मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी पिटाई हो। और दोबारा अपनी शक्ल इस गाँव में मत दिखाना।
वह चेला हैरान हुआ वहीं से अपने गुरू के पास लौट गया। उसने ऐसा ग़लत क्या कर दिया ? जो उसे इतने क्रोध का सामना करना पड़ा।
गुरु द्वारा शिष्य को सीख:
वापिस पहुँच कर सीधा अपने गुरू को पूरी घटना सुनाई और पूछा कि ये क्या रहस्य था ?
गुरू ने बताया कि हर एक योनि में एक नर व एक मादा होती है। यहाँ तुम जितने भी लोग देख रहे हो ये सभी नर हैं और वो जो तुमने देखी थी गाँव में वे मादाएँ थी।
चेले ने पूछा कि फिर उनके सीने इतने उभरे हुए क्यों थे ? तब गुरू ने और गहराई में जाते हुए बताया कि मादा के अंदर भगवान ने गर्भ बनाया है । जब मादा बड़ी होने लगती है तो धीरे धीरे उसके स्तन भी बड़े होने लगते हैं । ताकि जब वह बड़ी होकर गर्भ धारण करेंगी तो उसके गर्भ से उत्पन्न बालक इस संसार में आकर दूध पी सके ।
चेले ने पूछा :- दूध ही क्यों ? तो गुरू ने बताया कि बालक जन्म होते ही बड़ा असहाय होता है। और वह माता के दूध के अतिरिक्त और कुछ भी पचाने के योग्य नहीं होता। इस लिये भगवान ने उसके भोजन का प्रबंध किया हुआ है।
शिष्य को ज्ञान की प्राप्ति:
ये सब सुन कर चेले को सब कुछ समझ आ गया। और गुरू को कहने लगा कि हे गुरुदेव मुझे माफ़ करना जब उस भगवान ने उस अजन्मे बालक के लिये भोजन का प्रबंध पहले से ही कर दिया है जो पता नहीं कब जन्म लेगा। और मैं मूर्ख बना इसी चिंता में था कि कल क्या-क्या होगा। अब मेरी हर समस्या और चिंता का समाधान हो चुका है।
उस प्रमात्मा ने मेरे लिये भी मेरे जन्म से पहले ही पूरा प्रबंध कर डाला था। और मैं पता नहीं कहाँ किस कारण अपने आप को कर्ता मान कर जीवन जी रहा था कि जो कुछ हो रहा मेरे साथ वह मैं ही कर रहा हूँ ।
मेरा अंधकार दूर हुआ महाराज मुझे अब कोई चिंता नहीं रही । वो प्रमात्मा ही सबको कर्ता के भ्रम में डाल कर खुद ही कर्ता है। मेरे लिये अब उसकी भक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं बचता। मैं चला उसकी ओर!
गुरू ने चेले से कहा कि तुम्हारी शिक्षा पूरी हुई जाओ और लीन हो जाओ अपनी भक्ति में।
कहानी से शिक्षा:
जब हमारा अज्ञान दूर हो जाता है तो इसी प्रकार का वैराग्य जन्म लेता है। और उसके बाद कोई भोग करने की इच्छा नहीं बचती। जैसे इस कथा में भोग के विषय में भी शिष्य ने स्वयं हेतु वैराग्य ढूंढ लिया।
मेरा मानना है कि इस संसार में सब कुछ सम्भव है। यौन सम्बन्ध बनाने की इच्छा जब तक मस्तिष्क में रहती है तब मानव इससे दूर या इसे किये बिना नहीं रह सकता। जो व्यक्ति ये कहता है कि वह यौन सम्बन्ध नहीं बनाता तो वह हो सकता है कि शारीरिक रूप से सम्बन्ध न बनाता हो या बनाने योग्य न रहा हो परंतु उसका मस्तिष्क सब कुछ कर चुका होता है।
जब मस्तिष्क पूर्ण रूप से वैरागी हो जाता है तो तब मानव सारे सम्बन्धों से मुक्त हो जाता है।
तत् कर्म यत् न बन्धाय – सा विद्या या विमुक्तये ।
आयासाय अपरं कर्म – विद्या अन्या शिल्पनैपुणम् ॥
~विष्णुपुराण~
कर्म वह है जो बंधन में न डाले – विद्या वह है जो मुक्त कर दे।
अन्य कर्म केवल श्रम मात्र हैं – और अन्य विद्याएँ केवल शिल्प निपुणता हैं
अर्थात जिस कर्म से मनुष्य बन्धन में नही बन्धता वही सच्चा कर्म है ।
जो मुक्ति का कारण बनती है वही सच्ची विद्या है ।
शेष कर्म तो बंधन का ही कारण बन जाते हैं जिनके करने से प्राय चिन्ता और कष्ट ही प्राप्त होते हैं | हैं।