अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ,
है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता,
कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता?
-मैथिलिशरण गुप्त
वैदिक काल के अस्त्र–शस्त्र:
वैदिक काल के सैनिकों का मुख्य हथियार धनुष-बाण था| इसी आधार पर धनुर्वेद की रचना हुई जिसमें धनुष-बाण के मुख्य रूप, शिक्षण, प्रशिक्षण, बनावट आदि का वर्णन किया गया है| इसके अतिरिक्त वैदिककालीन अन्य प्रमुख आक्रामक हथियार निम्नलिखित थे-
- असि (तलवार): तलवार को कहते हैं। यह शस्त्र किसी रूप में पिछले काल तक उपयोग होता रहा। किसी भी सेना में ये सबसे ज्यादा प्रयुक्त होने वाला शस्त्र था.
- परतला:
- भाला: भाला एक शस्त्र को कहते हैं जो आम तौर पर लकड़ी के एक डंडे से बना होता है जिसपर धातु से बनी नोक होती है।
- बल्लम: यह एक लकड़ी का मोटा टुकड़ा होता है |
- दिद्यु:
- कर्तन (कटार): कटार पूर्ण रूप से हिन्दू खोज हैं, देखने में यह एक छोटा चाकू जैसा लगता हैं लेकिन, कवच भेदने के लिए यह बहुत प्रभावी शस्त्र हैं| यह शस्त्र धोखे से मारने और मल्ल युद्ध में बड़ा ही प्रभावी था, इसी वजह से यह पूरे भारत वर्ष में लोकप्रिय हो गया, उत्तर भारत मे लगभग सभी योद्धा इसे अपने सह शस्त्र के रूप में उपयोग करते थे, इसे बड़े आराम से कपड़ो के अंदर भी छिपाया जा सकता था। दूसरा हाथ में इसकी पकड़ किसी पंचिंग दस्ताने की तरह होती थी, इसलिए इस किसी पुंछ या मुक्के की तरह शत्रु पर मारा जाता था। इसकी बनावट अपने आप में अनोखी थी पूरे विश्व में इस तरह की अद्वितीय डिज़ाइन और कही नहीं मिलती हैं।
- सत (मुगदर): इसे साधारणतया एक हाथ से उठाते हैं। कहीं यह बताया है कि वह हथौड़े के समान भी होता है। राक्षसों में ये अस्त्र बहुत प्रसिद्द था.
- परशु (फरसा): यह छुरे के समान होता है। इसके नीचे लोहे का एक चौकोर मुँह लगा होता है। यह दो गज़ लंबा होता है। महर्षि परशुराम ये प्रधान शस्त्र था।
- सूर (छुरा): वास्तव में छुरे का प्रारंभ वैदिक युग से ही युद्ध में होता रहा है |
- हेति (हथौड़ा): हेति वर्तमान का हथौड़ा है |
- कशा (चाबुक): वर्तमान हंटर को वैदिक काल में कशा कहते थे |
- आर (आरा): आरा सेनाओं की अग्रिम पंक्ति में शत्रुओं पर अलक्षित ढंग से नुकसान पहुंचाने हेतु भी किया जाता था |
- चक्र: ये दूर से फेंका जाने वाला नुकीला गोल हथियार होता था. भगवान विष्णु तथा श्री कृष्ण का ये प्रधान हथियार माना जाता है.
- शक्ति: यह लंबाई में गजभर होती है, उसका हेंडल बड़ा होता है, उसका मुँह सिंह के समान होता है और उसमें बड़ी तेज जीभ और पंजे होते हैं। उसका रंग नीला होता है और उसमें छोटी-छोटी घंटियाँ लगी होती हैं। यह बड़ी भारी होती है और दोनों हाथों से फेंकी जाती है। रामायण में लक्ष्मण रावण के शक्ति से ही घायल होते है.
- पागा:
- शतद्वार:
- अबुंदी:
- वज्ज्र: इसके दो प्रकार होते थे: कुलिश तथा अशानि. इसके ऊपर के तीन भाग तिरछे-टेढ़े बने होते हैं। बीच का हिस्सा पतला होता है। पर हाथ बड़ा वज़नदार होता है। ये इन्द्र का प्रधान हथियार था.
- अशनि:
- कलिश:
धनुर्वेद:
धनुर्वेद, भारतीय सैन्य विज्ञान का दूसरा नाम है। ‘अथर्वेद’ का उपदेव है ‘धनुर्वेद’। इसमें धनुष से छोड़े गए तीर की दस गतियों का विस्तार से उल्लेख मिलता है। धनुर्विद्या की उत्पत्ति समय व स्थान निश्चित तौर पर ज्ञात तो नहीं है लेकिन ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार संभवत: यह विद्या भारत से ही यूनान व अरब देशों में पहुंची थी। संहिताओं और ब्राह्मणों में वज्र के साथ ही धनुष बाण का भी उल्लेख मिलता है। कौशीतकि ब्राह्मण में लिखा है कि धनुर्धर की यात्रा धनुष के कारण सकुशल और निरापद होती है। जो धनुर्धर शास्त्रोक्त विधि से बाण का प्रयोग करता है, वह बड़ा यशस्वी होता है।
इस युग में धातु का प्रयोग उन्नत पर था| सैनिकों के विभिन अंगों की रक्षा के लिए कवच का निर्माण भी हो गया था| सैनिक सीने पर कवच बंधाते थे| धनुष की प्रत्यंचा से रक्षा की लिए दस्ताने धारण करते थे| सिर के रक्षा के लिए का झिलम टोप (शिरस्त्राण) होता था जो लोहे, सोने या तांबे का होता था| ऋग्वेद में सैनिक रूप में मरुतों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे कन्धे पर ढाल , वक्षस्त्राण, पैरों में पाद्स्त्राण धारण किये हुए थे|