सिन्दूर का महत्व | सिंदूर कैसे बनता है? | सिंदूर का पौधा
पिछले कुछ दिनों से सोसल मीडिया से दूर रहा ,कल ऑनलाइन हुआ तो देखा हर तरफ सिन्दूर के ही चर्चे है ।।
पता चला किसी ने सिंदूर के माध्यम से एक बार फिर से आस्थाओ ,परम्पराओ और रीतियों का मजाक उड़ाया ,खैर ये कोई नई बात नही है सोने को जितना तपाया जाता है वो उतना ही निखार ले कर सामने आता है , भारतीय परम्पराओ का यदि मजाक न उड़ाया जाए तो उसपे लोग लिखे क्यों और उनके वास्तविक रूप का लोगो को पता कैसे चले ।।
तो आइये आप सभी को सिंदूर और उसके लाभ से परिचित कराते है और एक बार फिर वैदिक रीतियों में छुपे वैज्ञानिक आधार से रूबरू होकर गौरवान्वित होते है
सिन्दूर क्या है:
सिन्दूर लाल रंग एक चूर्ण होता है जिसे विवाहित स्त्रियाँ अपनी माँग में भरती हैं। प्राचीन हिंदू संस्कृति में भी सिन्दूर का काफ़ी महत्व है और महर्षियों ने इसका महत्त्व “सिन्दूरं सौभाग्य वर्धनम” कहकर बताया है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रथा 5000 वर्ष पूर्व से ही प्रचलित है।
सनातन संस्कृति में विवाहित महिलाओं को पति द्वारा माँग में सिन्दूर भरा जाता है सिन्दूर लगाते समय मंत्रोउच्चार मे कहा जाता है कि –
सम्राज्ञी श्वसुरे भव, सम्राज्ञी श्वश्रवाँ भव।
ननान्दरि सम्राज्ञी भव, सम्रज्ञी अधि देवृषु ।।
इहैव स्तं मा वि योष्टं विश्वसायुर्व्यश्नुतम्।
क्रीडन्तौ प्र्त्रैर्नप्तृभिर्मोदमान्नौ स्वस्त कौ।।
अर्थात –
सम्राज्ञी बनो श्वसुरजी की, तुम बनो सास की सम्राज्ञी
सब ननद और देवरजन की, हो स्नेह राज्य की सम्राज्ञी
हे नवदम्पति हो साथ सदा, आबद्ध प्रेम- आकर्षण में
तुम पूर्ण आयु आनन्द करो, मिल जग आंगन सुख वर्षण में प्रिय पुत्र- पौत्र शिशु क्रीडायें, उल्लास बढ़ायें जीवन में
हो प्रेम श्रेय के अधिकारी, तुम तन- मन कीर्ति आयुधन में
अब कोई भी नारीवादी जरा ये बताने का कष्ट करेंगी की इसमे गुलामी जैसा क्या है?
सिन्दूर बनता कैसे है?
एक खास पौधा है जिसकी फली से सिन्दूर बनाया जाता है जिसे ऑर्गेनिक सिन्दूर कहते है| वास्तव में भारत में इसी सिन्दूर का महत्त्व है |
इस पौधे को कमीला भी कहा जाता है और इसे रोरी, सिंदूरी, कपीला, कमूद, रैनी, सेरिया आदि नामों से भी जाना जाता है।
संस्कृत भाषा में कम्पिल्लक, रक्तांग रेची, रक्त चूर्णक एवं लैटिन में मालोटस, फिलिपिनेसिस नाम से प्रसिद्ध है।
बीस से पच्चीस फीट ऊंचे इस वृक्ष में फली गुच्छ के रूप में लगती है। फली का आकार मटर की फली की तरह होता है व शरद ऋतु में वृक्ष फली से लद जाता है। फली के अंदर भाग का आकार भी मटर की फली जैसा होता है जिसमें सरसों के आकार के दाने होते हैं जो लाल रंग के पराग से ढके होते हैं जिसे बिना कुछ मिलाए विशुद्ध सिंदूर, रोरी, कुमकुम की तरह प्रयोग किया जाता है।
रासायनिक सिंदूर (Cinabar) या मरक्यूरिक सल्फाइड Mercuric Sulphide (HgS):
जहाँ पहले लोग सिन्दूर 5000 सालो से घर पर बनाते आये थे अब पश्चिमीकरण के दौर में आसानी से बाजारों में सिंथेटिक सिन्दूर हर जगह बिक रहा है आज कुछ अनब्रैंडेड लाल रंग के पावडर मिलते हैं जिनके दाम दूसरे सिंदूर के तुलना में कम होते हैं। क्योंकि उत्पादक सिंदूर को सस्ता बनाने के लिए उसमें विषाक्त पदार्थ डालते है जो सिंदूर के रंग को और भी लाल बनाने में सहायता करते हैं। ऐसे सिंदूर नारियों को बहुत आकर्षक लगते हैं और वे इन्हें खरीदने के समय इसमें इस्तेमाल किए गए सामग्रियों को देखते भी नहीं हैं।
Cinnabar पावडर के रूप में होता है जो साधारणतः नारंगी लाल रंग का होता है, रासायनिक डाई और दूसरे सिन्थेटिक तत्व होते हैं, लाल कच्चा सीसा (crude red lead) पावडर के रूप में होता है, पीबी304, रोडामाइन बी डाई ,मर्क्यरी सल्फाइट आदि तत्व होते हैं।।
सिन्दूर लगाने से लाभ:
सिन्दूर के संबंध में पौराणिक मान्यता के अलावा कुछ वैज्ञानिक कारण भी है। इससे रक्त चाप तथा पीयूष ग्रंथि भी नियंत्रित होती है। जिसके कारण इसमें एक शारीरिक महत्व भी शामिल हो जाता है। इसलिए सिंदूर को हमारी भावनाओं के केन्द्र, पिट्यूटरी ग्रंथ पर लगाना चाहिए।
सिर के उस स्थान पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं । यह अत्यंत संवेदनशील होती है । यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है ।
महिलाओं को तनाव से दूर रखते हुवे यह मस्तिष्क को हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाह के बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं ।
सिन्दूर शरीर के ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखता है। विधवा औरतें इसे नहीं लगातीं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सिन्दूर यौन उत्तेजनाएं बढ़ाता है।
एक्यूप्रेशर में सिन्दूर:
GV22 से GV29 पॉइंट तक दवाब बनाये रखने के लिए भी सिन्दूर लगाया जाता है जिससे कि चिड़चिड़ापन कम होता है डिप्रेशन ,हायपर एक्टिविटी को कम करता है, इसपे दवाब से चेतना ,ब्लड सर्कुलेशन सामान्य रहता है और अन्य मौसमी बीमारियों से बचाव होता है|
पिछली बार की तरह कुछ महिला मित्रो को ये ना लगे कि सिर्फ स्त्रियों के लिए ही क्यों तो वो ये जान ले कि भारत में सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी अपने माथे पर तिलक लगाते हैं। और इन पॉइंट्स को manag करने के लिए साफा ,बाना ,पगड़ी ,टोपी पहनते थे। आप चुटिया या चोटी को भी इसका ही हिस्सा मान सकते है ।।
नाक तक सिन्दूर लगाने का कारण:
छठ जैसे त्योहारो पर नाक तक सिन्दूर लगाने का मजाक बनाने वाले मानसिक विकलांगो को पता होना चाहिए कि हमारी आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस माथे की बीच वाली जगह पर एनर्जी बनी रहती है। तिलक लगाने या बिंदी लगाने के दौरान उंगली से चेहरे की स्किन के बीच संपर्क होता है तो चेहरे की स्किन को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशियां सक्रिय हो जाती हैं। इससे चेहरे की कोशिकाओं में ब्लड सर्कुलेशन बना रहता है।यही प्रक्रिया नाक तक सिन्दूर लगाने के दौरान भी होती है|
विशेष – सिंदूर हर विवाहित स्त्री के लिए उनके सुहागन होने की निशानी के रूप में भी देखा जाता है क्योकि सिर्फ विवाहित स्त्रियाँ ही इसे लगा सकती है। इस तरह सिंदूर भरने को भी संस्कार माना जाता है जोकि सुमंगली क्रिया में आता है । शादी होने के बाद से लेकर पति या अपनी मृत्यु तक हर वैवाहिता अपनी मांग में सिंदूर अवश्य लगाती है। इसे नारी के श्रृंगार में एक अहम स्थान प्राप्त है जिसे महिलाओं के लिए मंगल सूचक माना जाता है|
जिस तरह के सिंदूर के लाभ है उनसे ये कहा जाता है कि सिंदूर महिलाओं के लिए अमृत या जीवन की तरह होता है क्योकि ये ना सिर्फ चिंता मुक्त करता है बल्कि अनिद्रा, सिर दर्द, याददाशत का कमजोर होना, मन की में अशांति और चेहरे की झुर्रियाँ जैसी समस्याओं को भी दूर करता है। समुद्र शास्त्र में तो ये भी लिखा गया है कि सिंदूर अभागिन स्त्रियों के लिए नए भाग्य के द्वार खोलता है और उनके सभी दोषों का निवारण करता है।।
सिन्दूर जहाँ सौभाग्य का प्रतीक है वही स्वास्थ्य के लिए हितकर भी क्योकि ये ना सिर्फ चिंता मुक्त करता है बल्कि अनिद्रा, सिर दर्द, याददाशत का कमजोर होना, मन की में अशांति और चेहरे की झुर्रियाँ जैसी समस्याओं को भी दूर करता है,उस सिन्दूर को सौभाग्य की जगह गुलामी का प्रतीक मानना और कुछ नही बस मानसिक दिवालियापन है ।।