राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 रोचक तथ्य | 100 Amazing Facts about RSS in Hindi
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। यह संघ या आरएसएस के नाम से अधिक लोकप्रिय है। इसका मुख्यालय महाराष्ट्र के नागपुर में है।
विजयदशमी के शुभ अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गयी थी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली शाखा में सिर्फ 5 लोग शामिल हुए थे। आज देशभर में 50 हजार से अधिक शाखाएं और उनसे जुड़े लाखों स्वयंसेवक हैं।
संघ की पहली शाखा में सिर्फ 5 लोग शामिल हुए थे, जिसमें सभी बच्चे थे. उस समय में लोगों ने हेडगेवार का मजाक उड़ाया था कि बच्चों को लेकर क्रांति करने आए हैं. लेकिन अब संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी और हिंदू संगठन है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पत्रिकाएँ देश में लाखों लोग पढ़ते हैं | अंग्रेजी में “आर्गेनाइजर” और हिंदी में “पांचजन्य” संघ के मुखपत्र हैं | इसके अलावा किशोर और बाल पत्रिका “देवपुत्र” का भी संपादन संघ के द्वारा होता है |
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छोटे बड़े लगभग 55 अनुसांगिक संगठन हैं जो संसार भर में फैले हैं |
सेवा भारती, सेवा भारती, विद्या भारती, संस्कार भारती, मजदूर संघ, बजरंग दल और राष्ट्रीय सिख संगत जैसे बड़े संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही घटक हैं |
महात्मा गाँधी ने १९३४ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर की यात्रा के दौरान वहाँ पूर्ण अनुशासन देखा और छुआछूत की अनुपस्थिति पायी। इससे प्रभावित होकर उन्होंने संघ की मुक्त कंठ से प्रसंशा किया था|
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संसार का अकेला ऐसा संगठन है जिसमें आज तक भ्रस्टाचार या अनैतिकता की स्थिति नहीं आई |
इस समय संघ-विचार परिवार द्वारा करीब 25,028 सेवा-प्रकल्प चलाए जा रहे हैं। ये प्रकल्प देश के 30 प्रांतों में 11,498 स्थानों पर चल रहे हैं। ये सेवा कार्य भिन्न-भिन्न क्षेत्रों पर केन्द्रित हैं, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक, आर्थिक विकास व अन्यान्य क्षेत्र, जिनमें क्रमश: 3,112, 14,783, 3,563, 1,820 और 1,750 सेवा-कार्य चल रहे हैं। भौगोलिक दृष्टि से 16,101 सेवा कार्य ग्रामीण क्षेत्रों में, 4,266 वनवासी क्षेत्रों में, 3,412 सेवा बस्तियों में और शेष स्थानों पर 1,249 सेवा कार्य चल रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 11,396 प्रकल्पों के अलावा वनवासी कल्याण आश्रम के 4,935, वि·श्व हिन्दू परिषद के 4,129, विद्या भारती के 3,980, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 227, भारत विकास परिषद के 150, दीनदयाल शोध संस्थान के 125 और राष्ट्र सेविका समिति के 86 सेवा प्रकल्प चल रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रकल्पों से 25,12,534 लोग लाभान्वित हो रहे हैं, विद्या भारती से 17,67,362, वि·श्व हिन्दू परिषद से 1,04,282, वनवासी कल्याण आश्रम के प्रकल्पों से 3,96,659, भारत विकास परिषद् से 93,532, राष्ट्र सेविका समिति से 26,136, दीनदयाल शोध संस्थान से 5,550, भारतीय मजदूर संघ से 3,800 और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सेवा-प्रकल्पों से 2,934 लोगों को लाभ पहुंच रहा है।
विद्या भारती:
RSS का संगठन विद्या भारती आज 20 हजार से ज्यादा स्कूल चलाता है, लगभग दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज, डेढ़ दर्जन कॉलेज, 10 से ज्यादा रोजगार एवं प्रशिक्षण संस्थाएं चलाता है.
शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए विद्या भारती संचालित “सरस्वती शिशु मंदिर” की आधारशिला गोरखपुर में पांच रुपये मासिक किराये के भवन में पक्की बाग़ में रखकर प्रथम शिशु मंदिर की स्थापना से श्रीगणेश किया गया था।
शिशु मंदिर प्रणाली से सम्पूर्ण भारत में 86 प्रांतीय एवं क्षेत्रीय समितियाँ विद्या भारती से संलग्न हैं। इनके अंतर्गत कुल मिलाकर 23320 शिक्षण संस्थाओं में 1,47,634 शिक्षकों के मार्गदर्शन में 34 लाख छात्र-छात्राएं शिक्षा एवं संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। इनमें से 49 शिक्षक प्रशिक्षक संस्थान एवं महाविद्यालय, 2353 माध्यमिक एवं 923 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, 633 पूर्व प्राथमिक एवं 5312 प्राथमिक, 4164 उच्च प्राथमिक एवं 6127 एकल शिक्षक विद्यालय तथा 3679 संस्कार केंद्र हैं।
केन्द्र और राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त इन सरस्वती शिशु मंदिरों में लगभग 30 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं और 1 लाख से अधिक शिक्षक पढ़ाते हैं।
सेवा भारती:
RSS का संगठन सेवा भारती देश भर के दूरदराज़ के और दुर्गम इलाक़ों में सेवा के एक लाख से ज़्यादा काम कर रहा है. लगभग 35 हज़ार एकल विद्यालयों में 10 लाख से ज़्यादा छात्र अपना जीवन संवार रहे हैं।
सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से अनाथ हुए 57 बच्चों को गोद लिया है जिनमें 38 मुस्लिम और 19 हिंदू बच्चे हैं।
दिल्ली में सेवा भारती 250 बालवाड़ियों का संचालन करती है, जिनमें 7 वर्ष तक की आयु के 10 हजार बच्चे हैं।
1971 में ओडिशा में आए भयंकर चंक्रवात से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक – संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है. भारत में ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में RSS ने अपने सेवा प्रकल्पों से मानव मात्र की सहायता किया है।
बनवासी कल्याण आश्रम:
भारत के वर्तमान मे ३६ हजार गांवों के 8 लाख वनवासी बच्चों को एकल विद्यालय फाउंडेशन मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करा रहा है। यहां बुनियादी शिक्षा ही नहीं दी जाती बल्कि समाज के उपेक्षित वर्गो को स्वास्थ्य, विकास और स्वरोजगार संबंधी शिक्षा भी दी जाती है।
भारत के वनवासी एवं पिछड़े क्षेत्रों में इस समय २५,००० से अधिक एकल विद्यालय चल रहे हैं। ग्रामीण भारत के उत्थान में शिक्षा के महत्व को समझने वाले हजारों संगठन इसमें सहयोग दे रहे हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद:
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की स्थापना मुंबई में 1 जुलाई 1941 को हुई थी। इसकी स्थापना का श्रेय प्रोफेसर ओमप्रकाश बहल को जाता है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) को विश्व के सबसे बड़ा छात्र संगठन के रूप में भी जाना जाता है। विद्यार्थी परिषद का नारा है- ज्ञान, शील और एकता।
“कौन बनेगा करोड़पति” में अमिताभ बच्चन के द्वारा एक प्रश्न के जवाब में ABVP को भारतीय जनता पार्टी का छात्र संगठन बताया गया था जबकि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छात्र संगठन है |
संघ-विचार परिवार द्वारा देश में सात रक्त संग्रह केन्द्र चलाए जा रहे हैं, जिनमें से एक बंगलौर में है और छह महाराष्ट्र में। स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुल प्रकल्पों की संख्या 3,112 है।
भारतीय किसान संघ:
भारतीय किसान संघ की स्थापना ४ मार्च १९७९ को राजस्थान के कोटा शहर में की गई। विलक्षण संगठन कुशलता के धनी, महान भारतीय तत्त्वचिंतक, आंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त मजदूर नेता श्री दत्तोपंतजी ठेंगडी ने भारतीय किसानों के उत्थान हेतु इस संगठन को साकार किया।
बजरंग दल:
इसकी शुरुआत 1 अक्टूबर 1984 मे सबसे पहले भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त से हुई जिसका बाद में पूरे भारत में विस्तार हुआ।
अभी इसके 1,300,000 सदस्य हैं जिनमें 850,000 कार्यकर्ता शामिल हैं। संघ की शाखा की तरह अखाड़े चलाती है जिनकी सँख्या लगभग ढाई हजार के आस पास है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस का इतिहास और आजादी में योगदान:
संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी।
जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे।
विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर लगाए थे।
1962 के युद्ध में सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद कर जवानों के कदम से कदम मिलाया।
1962 के युद्ध में सेना की मदद के कारण जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा. मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए।
कश्मीर के विलय हेतु सरदार पटेल ने संघ के द्वितीय सर संघचालक श्री गुरु गोलवलकर से मदद मांगी. तब गुरुजी श्रीनगर पहुंचे, महाराजा से मिले. इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया।
1965 के पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था. शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके।
1965 के पाकिस्तान से युद्ध के समय देश में युद्ध के समय घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक होते थे. युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था।
गोवा के विलय के समय दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी. 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई।
गोवा के विलय के समय संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया. संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे।
1975 से 1977 के बीच आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताज़ा है. सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाना शुरु किया।
1975 से 1977 के बीच आपातकाल में जब लगभग सारे ही नेता जेलों में बंद थे, तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की ही मदद से चल सकी थीं।
1955 में बना भारतीय मज़दूर संघ शायद विश्व का पहला ऐसा मज़दूर आंदोलन था, जो विध्वंस के बजाए निर्माण की धारणा पर चलता था. कारखानों में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मज़दूर संघ ने ही शुरू किया था. आज यह विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मज़दूर संगठन है।
ज़मींदारी प्रथा के ख़ात्में में संघ ने बड़ी भूमिका निभाई | राजस्थान में, जहां बड़ी संख्या में ज़मींदार थे ख़ुद कम्युनिष्ट पार्टी को यह कहना पड़ा था कि भैरों सिंह शेखावत राजस्थान में प्रगतिशील शक्तियों के नेता हैं. संघ के स्वयंसेवक शेखावत बाद में भारत के उपराष्ट्रपति भी बने।
हिन्दू धर्म में सामाजिक समानता के लिये संघ ने दलितों व पिछड़े वर्गों को मन्दिर में पुजारी पद के प्रशिक्षण का पक्ष लिया है।
आरएसएस के चौथे प्रचारक राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया की आत्मकथा में लिखा है कि उत्तरप्रदेश में गौहत्या पर प्रतिबंध 1955 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन सीएम गोविंद वल्लभ पंत ने रज्जू भैया के कहने पर ही लगाया गया था.
सामाजिक समरसता के लक्ष्य को लेकर देशभर में 3563 प्रकल्प इस समय चल रहे हैं। महाराष्ट्र की संस्था “भटके विमुक्त विकास प्रतिष्ठान’ यहां की एक घुमन्तु जनजाति “पारदी’ के उत्थान का कार्य कर रही है। मगर सांगवी गांव में पारदियों के 25 परिवारों को बसाया गया है, उनके बच्चों को विद्यालयों में भर्ती कराया गया है।
पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई और गैर कानूनी निर्माण कार्यों ने पर्यावरण पर गम्भीर संकट खड़ा कर दिया है। वनों के संरक्षण के लिए हिन्दू सेवा प्रतिष्ठान के आरोग्य विकास प्रकल्प ने कर्नाटक में वृक्षों की गैर कानूनी कटाई के विरुद्ध अभियान छेड़ा हुआ है। साल में एक बार वृक्षारोपण अभियान चलाया जाता है। 1980 के दौरान 75 हजार एकड़ वनभूमि एक संयुक्त निगम को सौंपने की सरकार की कोशिश पर स्वयंसेवकों ने ही लगाम लगायी थी।
1989 में कलकत्ता में शुरू हुई संस्था वनबंधु परिषद वनवासी बंधुओं और शेष देशवासियों के बीच एक सेतु का काम करती है। महानगरों और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वनवासियों की जीवनचर्या का शायद ही भान हो। परिषद शहरी लोगों को उनके परिवारों सहित वनवासियों के गांवों का भ्रमण कराती है। जब उन्हें वनवासियों के जीवन की सही स्थिति का पता चलता है तो वे परिषद के माध्यम से अपने वनवासी बंधुओं की हर तरह की मदद करते हैं। समाज के कमजोर वर्गों में भी परिषद के सेवा कार्य चलते हैं।
Shivesh- it’s a nice article and information. Keep up the good work!!!
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