भारत और अमेरिका के बीच 15 चिनूक हेलिकॉप्टर्स तथा 22 AH-64E अपाचे हेलिकॉप्टर्स के लिए सितम्बर, 2015 में समझौता हुआ था। भारत में चिनूक हेलीकाप्टर्स की पहली खेप पहुँच गयी है, पहले बैच में 4 चिनूक हेलीकाप्टर्स पहुँच गए हैं।
इन हेलीकाप्टर्स का उपयोग भारतीय सैनिकों को कम समय में किसी स्थान पर तैनात करने के लिए किया जायेगा। इन हेलीकाप्टर्स को चंडीगढ़ एयरफोर्स बेस ले जाया जायेगा, जहाँ पर इन्हें अधिकारिक रूप से शामिल किया जायेगा।
चिनूक क्या अभिप्राय है?
रॉकी पर्वत की पूर्वी ढाल में कोलारेडो से उत्तर में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया तक पर्वतीय ढाल के सहारे चलने वाली गर्म व शुष्क हवा जो संयुक्त राज्य अमेरिका मे चलती है उसे चिनूक कहते हैं।
चूँकि यह हेलीकाप्टर ऊँचीं पर्वतीय जगहों पर नीची उडान भर सकने में सक्षम है इसलिए इसका नाम चिनूक रखा गया है।
लादेन को मारने वाले “चिनूक हेलीकॉप्टर” की पूरी जानकारी:
चिनूक भारतीय वायुसेना के लिए एक महत्वपूर्ण बल गुणक है जो विभिन्न इलाकों और परिस्थितियों में काम कर सकता है।
यह एक उन्नत मल्टी-मिशन हेलीकॉप्टर है, जो भारतीय सशस्त्र बलों को लड़ाकू और मानवीय मिशनों के पूरे स्पेक्ट्रम में बेजोड़ सामरिक एयरलिफ्ट क्षमता प्रदान करेगा।
क्या आप जानते हैं कि यह M777 हल्के हॉवित्जर विमानों को एयरलिफ्ट करने की क्षमता रखता है जो पिछले साल भारतीय सेना के आर्टिलरी में शामिल किए गए हैं?
चिनूक की पेलोड क्षमता लगभग 10 टन है यानी यह 10 टन तक के भार को कहीं भी ले जा सकता है।
भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है चिनूक हेइकोप्टर:
इन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल सैनिकों, हथियारों, डिवाइस, ईंधन, सड़क निर्माण और इंजीनियर उपकरणों को ढोने में किया जाएगा। इसके अलावा इनका इस्तेमाल आपदा रहित इलाकों में भी किया जाएगा।
यह भारत के उत्तर और उत्तर-पूर्वी इलाकों में पर्वतीय क्षेत्र में आपूर्ति करेंगे। चिनूक भारी ऊँचाइयों तक भारी पेलोड पहुंचा सकता है और उच्च हिमालय संचालन के लिए भी अनुकूल है।
इससे सैन्य और HADR (Humanitarian Aid and Disaster Relief ) मिशनों में भारत की क्षमताओं में वृद्धि होगी। इसलिए इसे किसी भी समय और सभी मौसम में संचालित किया जा सकेगा।
इसके अलावा, ये कठिन और घने इलाके में ऑपरेशन के लिए भी उपयुक्त हैं क्योंकि यह एक मल्टीमिशन श्रेणी का हेलीकॉप्टर है।
चिनूक की पहली इकाई को IAF में 25 मार्च, 2019 को चंडीगढ़ एयर फोर्स स्टेशन 12 विंग में शामिल किया गया है।
चिनूक डील के बारे में कुछ अनसुने तथ्य:
2015-16 में, भारत द्वारा 2 सौदों पर हस्ताक्षर किए गए: एक चिनूक हेवी-लिफ्ट हेलिकॉप्टर के लिए और दूसरा अपाचे हेलिकॉप्टर के लिए।
सितंबर 2015 में रक्षा मंत्रालय ने उत्पादन के लिए बोइंग के साथ-साथ 15 चिनूक हेलीकॉप्टरों के प्रशिक्षण और खरीद के लिए समझौते को अंतिम रूप दिया था।
कहा जा रहा है कि अपाचे की आपूर्ति पठानकोट एयरबेस पर सितंबर 2019 की शुरुआत में की जाएगी।
इसलिए ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय वायुसेना में चार CH-47 चिनूक हेलीकॉप्टरों को शामिल करने से एयरलिफ्ट क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा।
यह सभी प्रकार के इलाकों में हेली-लिफ्ट क्षमताओं को बढ़ाएगा और साथ ही चिनूक, अपाचे वायुसेना के आधुनिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होंगे।
विश्व के किन देशों के पास है चिनूक हेलीकाप्टर:
फरवरी 2007 में पहली बार नीदरलैंड इस हेलीकॉप्टर का पहला विदेशी खरीददार बना था। उसने CH-47F के 17 हेलीकॉप्टर खरीदे थे।
इसके बाद 2009 में कनाडा ने CH-47F के 15 अपग्रेड वर्जन हेलीकॉप्टर खरीदे थे। दिसंबर 2009 में ब्रिटेन ने भी इस हेलीकॉप्टर में अपनी रुचि दिखाई और 24 हेलीकॉप्टर खरीदे।
2010 में ऑस्ट्रेलिया ने पहले सात और फिर तीन CH-47D हेलीकॉप्टर खरीदे थे। 2016 में सिंगापुर ने 15 हेलीकॉप्टर का ऑर्डर कंपनी को दिया था। अब तक कुल 26 देशों के पास ये हेलीकॉप्टर मौजूद है।
चिनूक हेलीकॉप्टर की बहमूल्य विशेषताएं:
- चिनूक हेलिकोप्टर रात में भी उड़ान भरने में और किसी भी प्रकार की सैन्य कार्यवाही व ऑपरेशन के लिए सक्षम है
- किसी भी मौसम में ऑपरेशन को अंजाम देने क लिए तत्पर
- किसी भी प्रकार के परिवहन में इस्तेमाल किया जा सकता है
- असैन्य कार्यों जैसे आपदा प्रबंधन व आग को काबू व बुझाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है
- इनमें विमान की भांति एकीकृत डिजिटल कॉकपिट मैनेजमेंट सिस्टम है
- चिनूक हीलिकोप्टर को अमेरिकी बूइंग नामक कंपनी ने बनाया है
- 11 टन पेलोड और 45 सैनिकों का वजन झेलने की छमता रखती है चिनूक।