प्रधानमंत्री की कैबिनेट समिति ने सुरक्षा पर एक नयी एजेंसी “रक्षा अन्तरिक्ष अनुसन्धान एजेंसी” Defense Space Research Agency (DSRA) की स्थापना का निर्णय लिया है। यह नयी एजेंसी अन्तरिक्ष युद्धक हथियार प्रणाली व तकनीक विकसित करने का कार्य करेगी।
अंतरिक्ष में युद्ध की संभावनाओं के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) ने नई एजेंसी गठित करने को मंजूरी दे दी है। इस एजेंसी का नाम रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (DSRA) रखा गया है।
अमरिका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने फरवरी 2019 में ऐलान किया था;
“USA ‘स्पेस फोर्स’ का निर्माण करेगी | रशिया और चीन इन प्रमुख देशों ने भी अंतरिक्ष क्षेत्र में होड़ लगाई है और अंतरिक्ष में अपने हितसंबंधों की सुरक्षा के लिए अमरिका को यह निर्णय करना अनिवार्य है,”
कैसे काम करेगी रक्षा अन्तरिक्ष अनुसन्धान एजेंसी (DSRA):
- रक्षा अन्तरिक्ष अनुसन्धान एजेंसी में वैज्ञानिक की एक टीम होगी जो भारतीय थल सेना, नौसेना तथा वायुसेना के साथ मिलकर कार्य करेगी।
- यह भारत की अन्तरिक्ष सुरक्षा के लिए तकनीकें विकसित करने का कार्य करेगी।
- इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय सेना को अन्तरिक्ष में युद्ध लड़ने के लिए तैयार करना है।
- रक्षा अन्तरिक्ष अनुसन्धान एजेंसी, अन्तरिक्ष रक्षा एजेंसी (DSA) को अनुसन्धान व विकास सम्बन्धी सहायता प्रदान करेगी।
क्या है अन्तरिक्ष रक्षा एजेंसी (DSA)?:
- इसकी स्थापना बंगलुरु में एयर वाईस मार्शल रैंक के अधिकारी के अधीन की जा रही है, यह एजेंसी बाद में तीनों सशस्त्र बलों के अन्तरिक्ष सम्बन्धी गतिविधियों को संभालेगी।
- इसका निर्माण भारत को अन्तरिक्ष में युद्ध लड़ने के लिए तैयार करने के उद्देश्य से किया गया है।
- यह एजेंसी अन्तरिक्ष तथा अन्तरिक्ष सम्बन्धी खतरों के सम्बन्ध में नीति निर्माण कार्य भी करेगी।
क्या है स्पेस वारफेयर:
अंतरिक्ष का इस्तेमाल युद्धक गतिविधियों में करने हेतु ही स्पेस वारफेयर अस्तित्व में आया।
अमेरिका ने 1985 में ही इसका कार्य प्रारंभ किया और उसके बाद रूस ने 1992 में स्पेस वारफेयर हेतु एक टास्क फोर्स बनाया।
“मिशन शक्ति” से भारत कर चुका है कार्यक्रम का आगाज़:
इससे पहले मार्च, 2019 में भारत ने अपने पहले एंटी सैटेलाइट मिसाइल (ए-सैट) का सफल परीक्षण किया था।
इस परीक्षण में भारत ने एक मिसाइल से अपने ही सैटेलाइट को मार गिराया था।
इसके साथ ही भारत यह सफल परीक्षण करने वाले दुनिया के चार चुनिंदा देशों में शामिल हो गया था।
वैज्ञानिकों की उस सफलता की जानकारी खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन देते हुए दी थी।
यह कार्य लांच के केवल तीन मिनट बाद ही पूरा कर लिया गया। यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
इस मिशन का नेतृत्व रक्षा अनुसन्धान व विकास संगठन द्वारा किया गया।
टारगेट सैटेलाइट 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा कर रहा था।
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि भारत का यह मिशन किसी दूसरे देश के विरुद्ध नहीं है। इस मिशन को पूरा करने के लिए किसी अंतर्राष्ट्रीय कानून अथवा संधि का उल्लंघन नहीं किया गया है।
कितना जरुरी है यह कदम:
भारत ने किए इस परिक्षण के बाद चीन ने लेजर और इलेक्ट्रोमॅग्नेटिक हथियारों के परिक्षण का सिलसिला शुरू किया है| अमरिका और ऑस्ट्रेलिया के विमानचालकों पर चीन ने लेजर हमले भी किए है| इस पृष्ठभूमि पर अंतरिक्ष युद्ध की तैयारी के लिए भारत ने उठाया यह कदम काफी अहम है| अंतरिक्ष क्षेत्र में देश के हितसंबंध सुरक्षित रखने के लिए भारत को यह क्षमता प्राप्त करना जरूरी है और रक्षादलों के प्रमुखों ने एवं सामरिक विश्लेषकों ने भारत के नेतृत्व को समय समय पर यह अहसास भी दिलाया था|
जुलाई में ‘इंडस्पेसएक्स’ युद्धाभ्यास:
इस दौरान, जुलाई, 2019 के आखरी सप्ताह में भारत ‘स्पेस वॉर’ यानी अंतरिक्ष युद्ध की तैयारी के लिए युद्धाभ्यास करेगा, यह जानकारी सामने आ रही है|
भारत के इस युद्धाभ्यास के लिए ‘इंडस्पेसएक्स’ नाम दिया गया है और यह एक ‘टेबलटॉप’ युद्धाभ्यास रहेगा, ऐसा कहा जा रहा है| इस युद्धाभ्यास में आर्मी और विज्ञान क्षेत्र के अधिकारी एवं विशेषज्ञ शामिल होंगे, यह जानकारी दी जा रही है|
इस प्रकार के युद्धाभ्यास का भारत पहली बार आयोजन कर रहा है|