श्री अशोक सिंहल होने के मायने / पुण्यतिथि 17 नवम्बर विशेष 

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श्री अशोक सिंहल होने के मायने / पुण्यतिथि 17 नवम्बर विशेष 

जब इस देश में IIT जैसी इंजीनियरिंग संस्थान न थे तब इस देश की मेधा की सबसे बड़ी प्रयोगशाला बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एवं रुडकी विश्वविद्यालय हुआ करती थी । अशोक सिंहल BHU से मैटलर्जिकल इंजीनियरिंग में BE की शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने m-tech की पढ़ाई को छोड़कर भारतीय संस्कृति की सेवा करने के लिए आजीवन ब्रम्हचर्य का व्रत लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरोधाओं के साथ अपने पूरे जीवन को होम कर देने की जीजिविषा और लौह व्यक्तित्व के स्वामी थे अशोक सिंघल जी ।
बहुत कम लोगों को ज्ञात है की माननीय श्री अशोक सिंघल जी भारतीय शास्त्रीय संगीत में पारंगत थे एवं उन्होने पंडित ओंकार नाथ ठाकुर जी से संगीत गायन की विशिष्ट शिक्षा भी ली थी ।
1942 में प्रयाग में पढ़ते समय संघ के प्रचारक रज्जू भैया ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया। वे भी उन दिनों वहीं पढ़ते थे। उन्होंने अशोक सिंघल की माता को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनाई। इससे उनकी माता काफी प्रभावित हुईं और सिंघल को संघ के शाखा में जाने की अनुमति दे दी। इस प्रकार शाखा जाने का जो क्रम शुरू हुआ, तो फिर वह बढ़ता ही गया।
1992 में अयोध्या की ऐतिहासिक घटना के बाद श्रीमान अशोक सिंहल जी देश के सबसे लोकप्रिय सामाजिक नेताओं में शुमार थे । यह इतना आसान नहीं है की लोकप्रियता के चरम पर पहुंच कर भी आप अपने आप को राजनीतिक लालसा से दूर रख कर अपनी संस्कृति और मातृभूमि की सेवा के लिए अपना सब कुछ ले होम कर दें ।
माननीय अशोक सिंघल की लोकप्रियता का वह आलम था कि उनकी एक हुंकार पर दिल्ली की काग्रेंस सरकार को भी उखाड फेंकने की क्षमता रखने वाला जन समुद्र हमेशा तत्पर था ।
अशोक सिंघल को मैं एक सामान्य व्यक्ति नहीं मानता हूं और पुरे विश्वास से कह सकता हूं कि माननीय अशोक सिंघल जी हेडगेवार और गुरु गोलवलकर की परंपरा के महापुरूष और दिशानिर्देशक थे । एक महान संत थे अशोक जी ।
रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे ।
शत शत नमन ।

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Shivesh Pratap

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