रोहतांग पास यानि भृगु-तुंग शिखर की यात्रा : एक संस्मरण

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रोहतांग पास यानि भृगु-तुंग शिखर: एक परिचय 

लद्दाखी भाषा ( भोटी ) में रोहतांग का अर्थ ‘लाशों का ढेर’ होता है| आपको बता दूं कि रोहतांग दर्रे का पुराना नाम भृगु-तुंग था | कहते हैं की महादेव शिव के त्रिशूल के प्रहार से यहां पर्वत शिखर दो हिस्सों में टूट कर एक दर्रा बन गया | दर्रे के अर्थ है पहाड़ों के बीच कोई सपाट क्षेत्र यानी “दर” या ठिकाना |

रोहतांग पास की स्थिति:

रोहतांग दर्रा हिमालय के पूर्वी पीर पंजाल रेंज पर समुद्र तल से 4000 मीटर (13,050 फीट ) की ऊंचाई पर यानि एवरेस्ट के लगभग आधी उंचाई पर स्थित है और मानाली से 51 किलोमीटर मनाली-लेह के मुख्यमार्ग पर पड़ता है |

दरअसल, रोहतांग दर्रा हिमालय का एक प्रमुख दर्रा है. यह मौसम में अचानक अत्यधिक बदलावों के कारण भी जाना जाता है | जैसे ही हम गए बर्फ की फुहारे पडने लगी फिर धूप हो गई और फिर फुहारें पडने लगीं ।

जैसे ही यह मार्ग सर्दियों में बंद होता है, इस जिले के 30000 लोगों का संपर्क संसार से कट जाता है | तब इनका जीवन प्रदेश सरकार द्वारा प्राप्त सस्ते राशन से चलता है और स्वास्थ्य ईश्वर के भरोसे |

रोहतांग पास तापमान | Rohtang Pass Temperature:

जैसे ही हम लोग 12 जून को 12 बजे दोपहर में वहां पहुचे; बस वाले ने हमें 4.30 बजे तक घूम कर बस में वापस आने को कहा | जैसे ही हम बस से उतरे तो थोड़ी धूप थी पर 10 मिनट के भीतर ही यहाँ बादल छा गए और बर्फ की फुहारें पड़ने लगीं | हम सभी रोमांच से खुश थे | 30 मिनट के बाद फिर धूप हो गई और थोड़ी देर बाद फिर बर्फ की फुहारें | धुप में तापमान लगभग 3-5 डिग्री सेल्सियस और बर्फ की फुहारों में -1 या -3 डिग्री का तापमान था |

रोमांच से भरी है यह यात्रा:

यह कितना खतरनाक है कि इसके लिए बस आपको इतना जानना ही काफ़ी है कि यह दर्रा लगभग साल के आधे दिन तो बंद ही रहता है. दर्रे को सिर्फ़ मई से नवंबर के बीच में ही खोला जाता है| कुल्लु-लाहौल और स्पीति घाटी को जोड़ता यह रोहतांग दर्रा भारत के लिए बेहद सामरिक महत्व रखता है यही कारण है कि यहाँ केलांग घाटी को जोडने के लिए सरकार 8 KM की एक सुरंग बना रही है ।

व्यास नदी का उद्गम इसी भृगु-तुंग के व्यास कुंड से होता है | यहाँ करोड़ों टन ग्लेसिअर के दबाव से सदा नीरा व्यास नदी निकलती है | इसकी कुल लंबाई 460 कि॰मी॰ है और इसके बाद यह पंजाब में सतलज नदी में मिलकर अंततः अरब सागर में विलीन हो जाती है।

पूरे क्षेत्र में पहाडों के दरारों से रिसते हुए पानी, सोतों और झरनों को देख ऐसा लगा कि समूची प्रकृति ही नगपति भगवान शिव का रूद्राभिषेक कर रही है ।

#शिवेशानुभूति


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Shivesh Pratap

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