“परशुराम नहीं मालवीय जी हों ब्राह्मण समाज के आदर्श”
श्री मालवीय जी को भारत रत्न मिलना एक साधारण सनातन हिंदू के निश्चय की पराकाष्ठा ओर अपनी संस्कृति के प्रति निष्ठा और आदर्श प्रेम को दिया जाने वाला सम्मान है ।
आज के आधुनिक युवा के मन मेँ भले ही श्री अटल वाजपेयी जी की स्मृतियाँ गुंजयमान हों परंतु गुलाम भारत मेँ भारतीय संस्कृति को आधुनिक विश्व से पहचान कराने के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना, सांस्कृतिक नवीकरण एवम गर्वोक्ति का जो दर्शन मालवीय जी ने अंग्रेजो के जमाने मेँ दिया वह अनुकरणीय है
ओर आज के वैश्वीकरण के परिपेक्ष्य मेँ महामना मदन मोहन मालवीय जी का विचार हिंदू के लिए भारतीय संस्कृति प्रेमियोँ के लिए और अधिक महत्वपूर्ण और प्रेरणादाई हो गया है ।
श्री मालवीय जी ने सिर्फ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की नियुक्ति नहीँ रखी थी अपितु उनहोने भारतवर्ष की सभी अमीर एवम गरीब वर्ग मेँ भाव जगाया । हर व्यक्ति संस्कृति की सेवा कर सकता हे ओर सभी को करना चाहिए ।
युवाओं मेँ शक्ति एवँ निर्भयता का संचार करने के लिए श्री मालवीय जीे की प्रेरणा से इलाहाबाद-वाराणसी के हर चौराहे पर श्री हनुमानजी की प्रतिमा देखने को आज भी मिलती है ।
बंबई,वडोदरा, दिल्ली, कानपुर के बहुत सारे सेठ साहूकारोँ से धर्मशालाएँ विद्यालय बनवाने की के लिए प्रेरित किया जिससे कि बहुत बडे स्तर पर संपूर्ण भारत मेँ भारतीय संस्कृति को खोई हुई शक्ति प्राप्त हो सके ।
आज के परिप्रेक्ष्य मेँ जब भारतीय संस्कृति में सब को समझते हुए लेकर चलने की बात की हे तो महामना के दूर दूर तक कोई नहीँ दिखाई देता हे ।
श्री मालवीय जी का व्यक्तित्व साधारण होते हुए भी इतना चमत्कारी था बडे बडे राजे महाराजे उनके सामने नतमस्तक हुए गरीब सिर उठाकर बात करते थे ।
आज के समय मेँ समर्थ एवम बुद्धिवादी ब्राम्हण वर्ग को भी श्री मालवीय जी को अपना आदर्श बनाना चाहिए ओर सारे हिंदू संस्कृति के उत्थान के लिए महामना के विचार दर्शन पर चलते हुए उस का नेतृत्व करना चाहिए ।