राफेल लड़ाकू विमान फ़्रांस की डसॉल्ट एविएशन नाम की कम्पनी का एक बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान है। राफेल-A श्रेणी के पहले विमान ने 4 जुलाई 1986 को उड़ान भरी थी। भारत ने फ़्रांस से 36 राफेल जेट लड़ाकू विमान खरीदने का सौदा किया है।
यह पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है जो कि भारत की बूढ़ी होती वायुसैनिक ताकत को मजबूती देगा। नीचे आर्टिकल में हमने यह बताया है कि आखिर राफेल विमान की क्या विशेषताएं है जो इसे बहुत शक्तिशाली जेट विमान बनातीं है।
राफेल की चयन प्रक्रिया की कहानी:
भारत के वायुसेना की ताकत परम्परागत रूप से रूस से खरीदे गए लड़ाकू विमानों MIG-27, MIG-27, MIG-35 से बढ़ाता रहा है। लेकिन अब भारत इस प्रथा को बदलकर फ़्रांस में बने आधुनिक राफेल विमान को खरीदने का सौदा कर चुका है।
भारत ने अपनी वायुसेना को मजबूत करने के लिए वर्ष 2007 में बहुउद्देशीय नए लड़ाकू विमानों के लिए टेंडर जारी किये थे जिसमें अमेरिका के F-16, FA-18, रूस के MIG-35, स्वीडन के ग्रिपिन, फ्रांस के राफेल और यूरोपीय समूह के यूरोफाइटर टाइफून की दावेदारी पेश की थी।
27 अप्रैल 2011 को परीक्षण की आखिरी दौड़ में यूरोफाइटर और राफेल ही भारतीय परिस्तिथियों के अनुकूल पाए गए थे और अंततः 31 जनवरी 2012 को सस्ती बोली व फील्ड ट्रायल के दौरान भारतीय परिस्थितियों और मानकों पर सबसे खरा उतरने के कारण यह टेंडर राफेल को दिया गया था।
भारत; इस जेट विमान को खरीदने के लिए भारी भरकम रकम भी चुकाने को तैयार है। हालाँकि इस विमान की सही कीमत रक्षा समझौतों के तहत गोपनीय है।
लेकिन अहम् सवाल यह है कि आखिर इस विमान में ऐसी क्या खासियतें है कि भारत इसे खरीदने के लिए इतना उत्सुक है। आइये इस लेख में जानते हैं कि इस विमान की क्या-क्या विशेषताएं हैं;
तकनीकी में बेजोड़ है राफेल विमान:
राफेल लड़ाकू विमान एक मल्टीरोल फाइटर विमान है जिसे फ़्रांस की डेसॉल्ट एविएशन नाम की कम्पनी बनाती है।
राफेल-A श्रेणी के पहले विमान ने 4 जुलाई 1986 को उड़ान भरी थी जबकि राफेल-C श्रेणी के विमान ने 19 मई 1991 को उड़ान भरी थी।
वर्ष 1986 से 2018 तक इस विमान की 165 यूनिट बन चुकी हैं। राफेल A, B, C और M श्रेणियों में एक सीट और डबल सीट और डबल इंजन में उपलब्ध है।
राफेल विमान हवा से हवा, हवा से जमीन पर हमले के साथ परमाणु हमला करने में सक्षम होने के साथ-साथ बेहद कम ऊंचाई पर उड़ान के साथ हवा से हवा में मिसाइल दाग सकता है। इतना ही नहीं इस विमान में ऑक्सीजन जनरेशन सिस्टम लगा है और लिक्विड ऑक्सीजन भरने की जरूरत नहीं पड़ती है।
यह विमान इलेक्ट्रानिक स्कैनिंग रडार से थ्रीडी मैपिंग कर रियल टाइम में दुश्मन की पोजीशन खोज लेता है।
इसके अलावा यह हर मौसम में लंबी दूरी के खतरे को भी समय रहते भांप सकता है और नजदीकी लड़ाई के दौरान एक साथ कई टारगेट पर नजर रख सकता है।
यह जमीनी सैन्य ठिकाने के अलावा विमानवाहक पोत से भी उड़ान भरने के सक्षम है।
राफेल विमान की अन्य विशेषताएं:
1. यह 36000 फीट से लेकर 50000 फीट तक उड़ान भरने में सक्षम है। इतना ही नहीं यह 1 मिनट में 50 हजार फीट पर पहुंच जाता है।
2. यह 3700 किमी की रेंज कवर कर सकता है।
3. इसकी रफ़्तार 1920 किमी प्रति घंटे है।
4. यह 1312 फीट के बेहद छोटे रनवे से उड़ान भरने में सक्षम है।
5. यह 15,590 गैलन ईंधन ले जाने की क्षमता रखता है
6. राफेल, हवा से हवा में मारक मिसाइलें ले जाने में सक्षम है।
7. राफले एक बार में 2,000 समुद्री मील तक उड़ सकता है।
8. राफेल, अमेरिका के F-16 की तुलना में 0।82 फीट ज्यादा ऊंचा है।
9. राफेल, अमेरिका के F-16 की तुलना में 0।79 फीट ज्यादा लंबा है।
10. इसके विंग की लम्बाई 10.90 मीटर, जेट की ऊँचाई 5.30 मीटर और इसकी लम्बाई 15.30 मीटर है।
भारत को अब पांचवी पीढ़ी के विमानों की जरुरत पड़ रही है क्योंकि दुनिया के लगभग सभी देशों के पास उन्नत किस्म के लड़ाकू विमान हैं। यहाँ तक कि पाकिस्तान ने भी चीन से एडवांस्ड पीढी के विमान JF-17 और अमेरिका से F-16 खरीद लिए हैं ऐसे में भारत अब पुरानी तकनीकी के विमानों पर ज्यादा निर्भर नहीं रह सकता है।
चिंता की बात है कि भारत ने 1996 में सुखोई-30 के रूप में आखिरी बार कोई लड़ाकू विमान खरीदा था। इसलिए भारत को नयी पीढ़ी के विमानों को वायुसेना में जल्दी ही शामिल करना होगा। यही कारण है कि भारत को राफेल जैसे अत्याधुनिक फाइटर विमान की सख्त जरुरत है।
ऊपर दिए गए आंकड़े यह सिद्ध करते हैं कि राफेल विमान बहुत ही जबरदस्त लड़ाकू विमान है और अगर भारत को दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन रखना है तो उसे इस विमान की खरीदारी में आने वाली सभी बाधाओं को जल्दी से जल्दी दूर करना होगा।