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हिन्दू राज पर्वत, उत्तरी पाकिस्तान में हिन्दु कुश पर्वतमाला और काराकोरम पर्वतमाला के बीच स्थित एक पर्वत शृंखला है। इसका सबसे ऊँचा पहाड़ ६,८७२ मीटर (२२,५४६ फ़ुट) का है | मुसलमानों को और पाकिस्तान को यह “हिन्दू राज” नाम चुभना कोई बड़ी बात नहीं है| तो अब इसका नामांतरण कैसे किया जाए ??
इसके लिए उन्होंने इसकी लम्बाई के आधार पर इसे तीन हिस्से में बाँट दिया;
अब चुकी इनके नाम पड़ चुके हैं तो धीरे से पीछे से “हिन्दू राज” नाम को हटा कर किताबों में इसे इन उपरोक्त नामों से पढाया जा रहा है|
इसी क्रम में एक ओर हिन्दुकुश को “हिन्दू को मारने वाला” सिद्ध करते हुए इसे भी तिरिच मीर, नोशक पर्वत, इस्तोर-ओ-नल में बांटा जा चुका है| जिससे की हिन्दू संस्कृति का गुणगान करती इस पहाड़ी की सांस्कृतिक पहचान का समूलोचाटन हो सके|
हद तो तब हो गई जब की मुसलमानों ने कश्मीर के “गोपाद्री” शंकराचार्य पहाड़ी का नाम “सुलेमान टापू” रख दिया|
इस्लाम और पाकिस्तान का सच जानने के लिए शुजा नवाज की किताब ‘क्रॉस्ड स्वॉर्ड्स’ जरूर पढना चाहिए. शुजा ने कहा कि पाकिस्तान के इतिहास के बारे में सवाल पूछे जाने की जरूरत है. पाकिस्तान कब बना? 14 अगस्त 1947 को या 15 अगस्त 1947?
पाकिस्तान के गठन के जवाब में उन्होंने कहा कि एक निश्चित उत्तर है, 14 अगस्त 1947 को. लेकिन उन्होंने पाकिस्तानी की स्कूल की किताबों का हवाला देते हुए कहा कि उसमें लिखा है कि पाकिस्तान सन् 712 में तब बना, जब अरब और सिंध के लोग मुल्तान आए.
हिन्दुओं में इस विमर्श का अभाव ?
यदि इस देश के हिंदुओं ने एक विमर्श किया होता की हर मथुरा को आगरा, प्रयाग को इलाहाबाद, अयोध्या को फैजाबाद, कानपुर को खानपुर लक्ष्मण पुरी को लखनऊ और सीतापुर को महमूदाबाद क्यों बनाया गया ? और इसके क्या कारण थे ?? तो शायद आज इस देश के लिए संविधान में “इंडिया दैट इज भारत” न लिखा जाता है | परंतु हम हिंदुओं ने अपने पुराने इतिहास से कुछ भी ना सीखने की जैसे जिद ठान ली है|
कभी-कभी मुझे इस बात का बहुत आश्चर्य होता है जब इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर कर दिया गया है तो फिर मुस्लिम आक्रांताओं के नामों पर बसे हुए शहरों की जगह पर पुराने नामों को क्यों नहीं हटाया गया और तब इन सारी बातों के पीछे मुझे हिंदुओं की निष्क्रियता ही नजर आती है | नहीं तो आज काशी विश्वनाथ की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा और अयोध्या जन्म भूमि पर हिंदू अस्मिता को चिढ़ाती हुई मस्जिद ना होती |
नोएडा के विकास मार्ग पर एक पुराना गांव है जिसका नाम वसई है अभी तक उस जगह को लोग इसी नाम से जानते हैं परंतु 1 साल पहले मैंने देखा कि google मैप पर इस गांव का नाम “बसई बहाउद्दीन नगर” लिखा हुआ है बाद में मैंने पता किया तो यहां पर पाया की मुस्लिम आबादी ज्यादा है और जिन्होंने इस जगह का नाम बदलने के लिए ही इस प्रकार का प्रयास शुरु किया है| अगले चरण में इस जगह का नाम “बहाउद्दीन नगर” हो जायेगा |
मैं बचपन से अपने मामा के घर जाता हूँ | रास्ते में एक जगह पड़ती है जिसका नाम छितही है | इस बार मै गुज़रा तो वहां के सारे मुस्लिम दुकानों और बोर्ड पर असरफगंज (छितही) लिखा हुआ पाया| इसके कुछ सालों बाद उनके बोर्ड से छितही नाम हट कर सिर्फ असरफगंज ही रह जायेगा |
भारतीय संस्कृति के प्रेमियों को इस बात से चौकन्ना रहना चाहिए और अपने आसपास की गतिविधियों पर ध्यान रखते हुए इस्लामी नामों वाले शहरों को हिन्दू नाम वाले स्थानों में परिवर्तित भी करें |
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