भारतीय समाज के लिए “मदर्स डे” की उपयोगिता

Spread the love! Please share!!

इस लौकिक संसार में ईश्वर को परिभाषित करने हेतु जिस संस्कृति के मनीषियों ने “त्वमेव माता” कहा । यानि संसार में सबसे उपयुक्त दैविक स्वरूप माता का है ।

“मातृ देवो भव” की संकल्पना से हिंदु संस्कृति ने ईश्वर को माता में जीवंत कर दिया । प्रकृति में यदि किसी से भी सबसे भावनात्मक संबंध स्थापित करना हुआ तो भारत ने उसे माता कहा जैसे गौ माता और धरती माता ।
संन्यासी हो चुके शंकराचार्य को माता के स्वरूप पर इतना विश्वास है कि उन्होने कहा, “कुपुत्रो जायेत कवचिदपि कुमाता न भवति ।”

माता का ही संबंध प्रकृति में एक तरफा है उसे कोई चाहना नहीं है संतति से । वह ममता की गंगोत्री है और समर्पण का हिमालय है । तभी तो युधिष्ठिर को माता धरती से भी बडी लगती है । राम के लिए जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है

भारतीय मनीषा ने मातृ भाव को सम्मान देते हुए नारी की स्वाभाविक पहचान को ही मातृत्व से जोड दिया । “मातृवत परदारेषु” यानि परस्त्री को मातृवत देखना भारत के पुरूषार्थ का मानदंड है इसलिए ही वीर अर्जुन के द्वारा उर्वशी में भी मातृतत्व ही दिखता है । यह भाव ही अर्जुन को परम पुरूषार्थी बनाता है ।

ग्रामीण पूजा में “समय माता” से लेकर विशिष्ट शाक्त साधना तक मातृ सत्ता का पूजन हो या उमा-महेश, राधे-कृष्ण, सीता-राम हों ……..मातृ तत्व की प्रधान है ।

ईश्वर को मातृ तत्व से अभिव्यक्त करने के कारण मातृ भक्ति हिंदू जीवन का अभिन्न अंग है । एक ओर जहाँ कुछ मजहब नारी को विलासिता की मूर्ति मानकर बाजारों में बेचने का जिहाद कर रहे हैं और यूरोप का ईसाई समाज नारी को भोगकर मदर्स डे के बाजारीकरण से कमाने की जुगत में एक दिन को मातृ दिवस के रूप में मना कर शेष दिन के लिए स्त्री के भोगदिवस को मना रहा है ।

विचारणीय बिंदु यह है कि प्रतिदिन माता के दर्शन, चरण स्पर्श और आशीर्वाद से दिन का प्रारंभ करने वाला हिंदू समाज इस मदर्स डे पर क्यों उत्साहित है ??
हजारों वर्षों से मातृ नवमी मनाने वाला भारत का आज यूरोपीय मदर्स डे पर उत्साहित होना अवश्य ही मानसिक वैचारिक अंधभक्ति का प्रमाण है । मदर्स डे वह मनाए जो आज वृद्धाश्रम में जाकर अपनी मां के साथ केक काटेगा । भारत तो हर दिन मां को खिलाने के बाद उसी जूठी थाली में “शीथ प्रसाद” खाकर तृप्त होता है ।

माता का संबंध जन्म जन्मांतरों का है । जिस मातृ सत्ता का रज प्रभाव सात पीढियों की संतति को प्रभावित करता हो उस दैवीय संबंध के लिए एक दिन की खाना पूर्ति यूरोप के बाजारीकरण को ही मुबारक हो ।

© www.ShiveshPratap.com


Spread the love! Please share!!
Shivesh Pratap

Hello, My name is Shivesh Pratap. I am an Author, IIM Calcutta Alumnus, Management Consultant & Literature Enthusiast. The aim of my website ShiveshPratap.com is to spread the positivity among people by the good ideas, motivational thoughts, Sanskrit shlokas. Hope you love to visit this website!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is the copyright of Shivesh Pratap.