हम ‘इंजीनियर डे’ क्यों मनाते हैं?
क्या कभी आपने सोचा है कि हम ‘इंजीनियर डे’ क्यों मनाते हैं? देश के जाने-माने इंजीनियर और विषेशज्ञ एम. विश्वसरैया का जन्म साल 15 सितंबर 1860 को हुआ था। उन्हीं के जन्मदिन पर हर साल ‘इंजीनियर डे’ मनाया जाता है।
एम. विश्वसरैया यानि मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले में हुआ था। उनका पूरा नाम डॉ. मोक्षगुंडम विश्वसरैया है। उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री व माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता संस्कृत के विद्वान थे।
उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए बंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज में एडमिशन लिया लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी न होने पर उन्हें ट्यूशन लेना पड़ी।
इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से उन्हें इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पुणे के साइंस कॉलेज में एडमिशन मिला।
1883 की एलसीई व एफसीई (BE उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। पढ़ाई पूरी होने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया।
एम. विश्वसरैया लोगों में “सर एमवी” के नाम से विख्यात थे |
एम. विश्वेश्वरय्या के भागीरथ प्रयासों का परिणाम:
वो विश्वेश्वरय्या ही हैं जिनके प्रयास से
- ‘कृष्णा राजा सागर’ बांध,
- भद्रावती आयरन एंड स्टील वक्स,
- मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी,
- मैसूर विश्वविद्यालय,
- बैंक ऑफ मैसूर का निर्माण हो पाया।
विश्वेश्वरय्या ने ही पानी रोकने वाले ऑटोमेटिक फ्लडगेट का डिजाइन तैयार कर पेटेंट कराया, जो साल 1903 में पहली बार पुणे के खड़कवासला जलाशय में इस्तेमाल हुए।
जल प्रबंधन की प्रणाली जो दुनिया ने अपनाई:
जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार किया जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए समिति बनाई। इसके लिए MV ने एक नए ब्लॉक सिस्टम को ईजाद किया। उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करता था। उनके इस सिस्टम की प्रशंसा ब्रिटिश अधिकारियों ने मुक्तकंठ से की। आज यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है।
बंगलूर स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स तथा मुंबई की प्रीमियर ऑटोमोबाइल फैक्टरी उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है।
उड़ीसा की नदियों की बाढ़ की समस्या से निजात पाने के लिए उन्होंने एक रिपोर्ट पेश की। इसी रिपोर्ट के आधार पर हीराकुंड तथा अन्य कई बांधों का निर्माण हुआ।
पंचवर्षीय योजनाओं के स्वप्न द्रष्टा:
1928 में पहली बार रूस ने इस बात की महत्ता को समझते हुए प्रथम पंचवर्षीय योजना तैयार की थी। लेकिन विश्वेश्वरैया ने आठ वर्ष पहले ही 1920 में अपनी किताब रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया में इस तथ्य पर जोर दिया था।
इसके अलावा 1935 में प्लान्ड इकॉनामी फॉर इंडिया भी लिखी। मजे की बात यह है कि 98 वर्ष की उम्र में भी वह प्लानिंग पर एक किताब लिख रहे थे।
1952 में वह पटना गंगा नदी पर पुल निर्माण की योजना के संबंध में गए। उस समय उनकी आयु 92 थी। तपती धूप थी और साइट पर कार से जाना संभव नहीं था। इसके बावजूद वह साइट पर पैदल ही गए और लोगों को हैरत में डाल दिया।
1947 में वह आल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष बने।
‘कृष्णा राजा सागर’ बांध:
साल 1932 में ‘कृष्णा राजा सागर बांध’ के निर्माण में उन्होंने चीफ इंजीनियर के रूप में भूमिका निभाई थी। उस समय इस बांध को बनाने आसान नहीं था क्योंकि इस बांध को उस समय देश में सीमेंट नहीं बनता था।
विश्वेश्वरय्या के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती थी। ऐसे में विश्वसरैया ने हार नहीं मानी और उन्होंने इंजीनियर के साथ मिलकर ‘मोर्टार’ तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। ये बांध कर्नाटक राज्य में स्थित है और उस समय यह एशिया का सबसे बड़ा बांध साबित हुआ।
इस बांध की लंबाई 2621 मीटर और ऊंचाई 39 मीटर है।
कर्नाटक के भगीरथ हैं विश्वेश्वरय्या:
साल 1912 में उन्हें मैसूर के महाराजा ने दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया था।
शिक्षा को प्रोतसाहित करते हुए उन्होंने मैसूर राज्य में स्कूलों की संख्या को 4,500 से बढ़ाकर 10,500 की।
उन्होंने हैदराबाद के लिए बाढ़ से बचाने का सिस्टम डिजाइन तैयार किया जिसके बाद वे काफी चर्चा में आ गए।
मैसूर में लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल तथा पहला ‘फर्स्ट ग्रेड कॉलेज’ (महारानी कॉलेज) खुलवाने का श्रेय भी विश्वसरैया को ही जाता है।
जीते जी ही किविदंती बन गए श्री एम. विश्वेश्वरय्या:
1955 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
जिंदगी के 100 साल पूरे होने पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
101 साल की उम्र में 12 अप्रैल 1962 को श्री एम. विश्वसरैया ने नश्वर संसार को विदा कह दिया।
विश्वसरैया को आज भी देश उनके सराहनीय योगदान के लिए याद करते हैं।
विश्वेश्वरैया ईमानदारी, त्याग, मेहनत इत्यादि जैसे सद्गुणों से संपन्न थे। उनका कहना था, कार्य जो भी हो लेकिन वह इस ढंग से किया गया हो कि वह दूसरों के कार्य से श्रेष्ठ हो।
चिर यौवन का रहस्य:
भारत-रत्न से सम्मानित डॉ॰ मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया ने सौ वर्ष से अधिक की आयु पाई और अंत तक सक्रिय जीवन व्यतीत किया।
एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, ‘आपके चिर यौवन का रहस्य क्या है?’
डॉ॰ विश्वेश्वरैया ने उत्तर दिया, ‘जब बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है। और वह निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती तो वह मुझ पर हावी कैसे हो सकता है?’
bhai tum jo bhi koi book publish karo shaili aur samjha vishashay vashtu kafi saral h . allah malik