मित्रों, अंधरे में यात्रा करने वाला अपनी यात्रा में अक्सर ही दिशाभ्रम का शिकार हो जाता है | शायद हम भी आज के इस यंत्र प्रधान युग में हर काम हम इतनी तेजी से निपटा रहे हैं फिर भी स्वयं के लिए वक़्त नहीं निकाल पा रहे हैं फिर भी अँधेरे में ही भाग रहे हैं | कभी-कभी लगता है की हम जीवन को जी नहीं रहे हैं अपितु हर दिन १०० रुपये के छुट्टे नोट की तरह खर्च कर रहे है | मेट्रो से लेकर बाज़ारों तक हर ओर इंसान की भीड़ फिर भी न कोई पहचान ……न कोई संवाद !!! क्या यही सूचना और संचार की तेजी वाला संसार है जहाँ सूचना ने मन की गति को पीछे छोड़ दिया है परन्तु हम अपने पडोसी को नहीं जानते |
इस दुर्दशा से भले तो हम तब थे जब बैलगाड़ी में “नधे” बैलों की घंटियों का संगीत सुनकर कितनी दूर जाते थे और हर व्यक्ति को जानने वाले लोग कोसों तक फैले होते थे बिना किसी मोबाइल या फ़ोन के | जरुरत पर तो पडोसी का सम्बन्ध काम आता है ….कोसों दूर बैठे लोग सिर्फ सांत्वना ही दे पाने की स्थिति में होते हैं |
हम अपने समाज में नजदीकी संबंधों में आज कुंठित होते जा रहे हैं | हम बुरे लोगों की चर्चा भी करते हैं और बुराई भी करते हैं परन्तु यदि इस स्थान पर हम अच्छे लोगों की चर्चा करें और उनके अच्छे कामों की प्रशंसा करें तो इससे एक सकारात्मक प्रभाव भी पड़ेगा और एक “पॉजिटिव मोटिवेशन” से अन्य लोगों में भी उत्साहवर्धन होगा |
आइये कुछ नया विचार प्रयोग करते हैं …..“पॉजिटिव मोटिवेशन” के सिद्धांत से | इस सिद्धांत से हम अपने आस पास एक सकारात्मक और सहयोगी वातावरण अवश्य बना सकते हैं | जैसे;
बाजार में :
मित्रों जब हम बाजार में किसी कपडे की दूकान पर जाते हैं और वहां कोई सेल्स बॉय आपको पूरी निष्ठा से कपडे दिखता है तो आप उस दूकान के मालिक से अवश्य उस सेल्स बॉय के काम की तारीफ़ करें | इस बात हर तरह से एक जादू का कार्य करता है | प्रशंसा में आप का कोई मूल्य नहीं लगता परन्तु जब आप अगली बार जायेंगे तो वो सेल्स बॉय आप को ज्यादा बेहतर तरीके से सेवा प्रदान करेगा | दूसरी बात की उसकी प्रशंसा के कारण उसके मालिक को भी उस पर अधिक विश्वास होगा एवं आपकी प्रसंशा से उस सेल्स बॉय की सेलरी भी बढ सकती है | तो अगली बार से आप की हर प्रशंसा किसी के जीवन में इतना बदलाव ला सकती है | मैं बहुत बार कुछ सिक्योर्टी गार्ड की तारीफ़ उनके कम्पनी के श्रेष्ठ अधिकारियों से करता हूँ एवं होटल में उनके स्टाफ की प्रशंसा उनके विजिटर बुक में नाम के साथ लिखता हूँ |
ऑफिस में :
मित्रों दूसरी जगह ऑफिस है जहाँ हम अक्सर बॉस या दुसरे डिपार्टमेंट के लोगों को पानी पी-पी कर गरियाते हैं | ठीक है दुनिया में अच्छे बुरे लोग होते हैं परन्तु हम अपनी तरफ से किसी को अच्छा होने का निमंत्रण दे सकते हैं | हम कितनी बार समस्याओं को escalate करते हैं | क्या कभी हम किसी की प्रशंसा में भी escalation करते हैं ???
यदि हम किसी डिपार्टमेंट से किसी का अच्छा रिस्पांस पाते हैं तो हमें जरूर उनके टॉप लीडर्स से उनके कार्य की प्रशंसा करनी चाहिए | आप स्वयं के बारे में सोचें की आप के अच्छे कार्य की प्रशंसा यदि कोई आप के टॉप लीडर्स से करता है तो आप को कैसा महसूस होगा !!! बस कुछ ऐसा ही उस व्यक्ति को महसूस होगा जिसकी प्रशंसा आप करते हैं |इस तरह से आप को एक अच्छा सहयोगी भी मिलेगा और एक प्रतिस्पर्धी माहौल में अन्य लोग भी अच्छा करने की सोचेंगे |
निजी संबंधों में :
भारत ऐसा देश है जहाँ संयुक्त परिवार होने की वजह से हम आज के इस अहंकारी और असंतोषी वातावरण में चाचा-चाची, मामा-मामी, बुआ फूफा या भैया-भाभी जैसे संबंधों में भी कमो- बेस कभी कभी कुछ तंग महसूस करते हैं | संबंधों की मर्यादा को ध्यान में रखकर स्वयं के अहंकार को समझदारी से “रिलीज” करें | सहयोग एवं साहचर्य को सकारात्मक एवं प्रशंसात्मक नजरिये से देखें | जैसे मेरा एक अनुभव है पिछले साल मै मामा के यहाँ गया था वहां किसी बात पर मेरे मामा जी ने अपनी छोटी बहन यानि मेरी मम्मी को डांट दिया इस बात से क्षण भर के लिए मुझे अच्छा नहीं लगा परन्तु थोडा विचार करने पर महसूस हुआ की मामा जी और माता जी का भाई-बहन सम्बन्ध 55 साल पुराना है जबकि मेरा माँ-बेटे का सम्बन्ध मात्र 25 साल का है | और मामा जी ने जीवन में कितने उतार-चढ़ाव में मेरे माता जी के संबल के रूप में खड़े भी रहे | उनकी नाराजगी भी वैसी ही है जैसे मेरी अपनी बहन से हो सकती है |
इसी तरह एक पत्नी को परिवार में ये अवश्य सोच कर अपने सास का सम्मान करना चाहिए की उसके पति का सम्बन्ध उसकी सास के साथ माँ-बेटे का है जो सम्बन्ध पति-पत्नी सम्बन्ध से भी अधिक प्रगाढ़ है | यदि ऐसा विचार करके हर स्त्री अपने सास-ससुर के संबंधों में थोड़ा प्रशंसात्मक दृष्टिकोण रखे तो अवश्य ही हर परिवार “स्वर्गानुभूति” कर सकता है एवं हम सभी अपने आस पास “सर्वे भद्राणि पश्यन्तु” को सार्थक कर सकते हैं |
यही कारण है की हमारे हिन्दू समाज ने “विवेक”, “सत्यनिष्ठा”, “त्याग” जैसे गुणों को धर्म का मूल अंग बनाया क्यों की इतने बड़े समाज में हर व्यक्ति की “मोरल पुलिसिंग” असंभव है |
positive motivational words
Nice thoughts…. I always follow the Same…..
Thanks for whole heart….shiv
Keep moving shivesh 🙂
positive motivation can create a miracle