बहुत बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जो भारतीय संस्कृति आदिकाल से ही वीरों, भक्तों और धर्मनिष्ठ महापुरुषों के जीवन पर आधारित महाकाव्य से भरी पड़ी है, उस संस्कृति के बारे में सटीक जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं है | जैसे भारतीय युद्ध कला एवं अस्त्र-शस्त्रों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है| इसीलिए इस ज्ञान के विस्तार के क्रम में मैं यहां पर रामायण, महाभारत एवं पुराणों में वर्णित आयुधों, अस्त्र और शस्त्रों को वर्गीकरण के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं| आशा है कि इस दशहरे पर यह संकलन आपके ज्ञान में वृद्धि करेगा|
रामायण, महाभारत एवं पुराणों में वर्णित आयुधों का वर्णन:
अग्नि पुराण में धनुर्वेद के विषय में उल्लेख किया गया है कि उसमें अस्त्रों के प्रमुख 4 भाग हैं-
1. अमुक्ता, 2. मुक्ता, 3. मुक्तामुक्त और 4. मुक्तसंनिवृत्ती। प्राचीन भारतीय शस्त्रास्त्रों जिनका वर्णन महाभारत रामायण एवं पुराणों में हुआ है, को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
A) आक्रमणात्मक आयुध:
इनके अंतर्गत निम्नलिखित आयुधों का वर्णन किया गया है-
अ) मुक्त शस्त्र (मुक्ता):
जिनके जिन शास्त्रों को शारीरिक बल से फेंक कर प्रहार किया जाता था, उन्हें इस वर्ग में माना गया है| मुक्ता के 2 प्रकार हैं:-
1. पाणिमुक्ता : अर्थात हाथ से फेंके जाने वाले अस्त्र जैसे भाला और
2. यंत्रमुक्ता : अर्थात यंत्र द्वारा फेंके जाने वाले अस्त्र जैसे बाण, जो धनुष से फेंका जाता है।
इस वर्ग के शस्त्र इस भांति थे-
- धनुष
- बाण
- भिन्दिपाल
- शक्ति
- द्रुधण
- तोमर
- नालिक
- लगुण
- पाशा
- चक्र
- दंत कटक
- भिशुन्डी
(ब) अमुक्त आयुद्ध :
हाथ में पकड़कर जिस शास्त्र का प्रयोग किया जाता था वे अमुक्त वर्ग में गिने जाते थे| इनमें काटने, भोंकने और कुंद शस्त्र होते हैं | अमुक्ता के 2 प्रकार हैं-
1. हस्त-शस्त्र : हाथ में पकड़कर आघात करने वाले हथियार जैसे तलवार, गदा आदि।
2. बाहू-युद्ध : नि:शस्त्र होकर युद्ध करना।
इस वर्ग में निम्नलिखित शस्त्र थे-
- वज्र
- इली
- परशु
- गोशीर्ष
- असिधेनु
- लावित्र
- आस्तर
- कुन्त
- स्थाणु
- प्राश
- गदा
- पट्टिस
- मैष्टिक
- परिध
- मयुखी
- शातध्नी
(स) मुक्ता मुक्त:
कुछ ऐसे शस्त्र थे जिनका एक भाग हाथ में रहता था और दूसरा भाग शत्रु पर फेंका या प्रहार किया जाता है | हाथ में पकड़कर किंतु अस्त्र की तरह प्रहार करने वाले शस्त्र जैसे कि बर्छी, त्रिशूल आदि। अर्थात वे शस्त्र जो फेंककर या बिना फेंके दोनों प्रकार से प्रयोग किए जाते थे।
- त्रिशूल
(द) मंत्र मुक्त या मुक्तसंनिवृत्ती:
मुक्तसंनिवृत्ती का अर्थ है जो आयुध प्रहार के बाद वापस आ जाते हों | इस वर्ग के शस्त्र मंत्र शक्ति से छोड़े जाते थे इस वर्ग में निम्नलिखित शस्त्र थे-
- विष्णु चक्र:
- वज्र अस्त्र:
- कालपाशक:
- नारायणास्त्र:
- पशुपतास्त्र:
- आग्नेयास्त्र:
- पर्जन्य:
- वायव्य:
- पन्नग:
- गरुण:
- ब्रह्मशिरा:
- एकघ्नी
- अमोघास्त्र
- ब्रह्मास्त्र
B) सुरक्षात्मक आयुद्ध:
इसके अंतर्गत निम्नलिखित आयुधों का वर्णन प्राप्त होता है-
- शिरस्त्राण:
- वक्षस्त्राण:
- कटक:
- हस्तहन:
- ढाल: