योग एवं व्यायाम पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
Sanskrit Shlokas on International Yoga Day
अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। पहली बार यह दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया। जिसके बाद 21 जून को “अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस” घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को “अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस” को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमन्त्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अन्दर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है।
योग और व्यायाम से सम्बंधित अनेक श्लोकों का संकलन आपको बहुत अच्छा लगेगा;
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥
हे धनञ्जय तू आसक्तिका त्याग करके सिद्धिअसिद्धिमें सम होकर योगमें स्थित हुआ कर्मोंको कर क्योंकि समत्व ही योग कहा जाता है।
तपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः॥
तप, अध्यात्मशास्त्रों के पठन-पाठन और ईश्वर शरणागति – ये तीनों क्रिया योग हैं।
व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं।
आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम् ॥
व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।
व्यायामं कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् ।
विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥
व्यायाम करने वाला मनुष्य गरिष्ठ, जला हुआ अथवा कच्चा किसी प्रकार का भी खराब भोजन क्यों न हो, चाहे उसकी प्रकृति के भी विरुद्ध हो, भलीभांति पचा जाता है और कुछ भी हानि नहीं पहुंचाता ।
शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता ।
दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा ॥
व्यायाम से शरीर बढ़ता है । शरीर की कान्ति वा सुन्दरता बढ़ती है । शरीर के सब अंग सुड़ौल होते हैं । पाचनशक्ति बढ़ती है । आलस्य दूर भागता है । शरीर दृढ़ और हल्का होकर स्फूर्ति आती है । तीनों दोषों की (मृजा) शुद्धि होती है।
न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति ।
स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥
व्यायामी मनुष्य पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण नहीं करता, व्यायामी पुरुष का शरीर और हाड़ मांस सब स्थिर होते हैं ।
श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता ।
आरोग्यं चापि परमं व्यायामदुपजायते ॥
श्रम थकावट ग्लानि (दुःख) प्यास शीत (जाड़ा) उष्णता (गर्मी) आदि सहने की शक्ति व्यायाम से ही आती है और परम आरोग्य अर्थात् स्वास्थ्य की प्राप्ति भी व्यायाम से ही होती है ।
Sanskrit Shloka on Yoga and Vyayam
न चास्ति सदृशं तेन किंचित्स्थौल्यापकर्षणम् ।
न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो भयात् ॥
अधिक स्थूलता को दूर करने के लिए व्यायाम से बढ़कर कोई और औषधि नहीं है, व्यायामी मनुष्य से उसके शत्रु सर्वदा डरते हैं और उसे दुःख नहीं देते ।
समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः ।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥
जिस मनुष्य के दोष वात, पित्त और कफ, अग्नि (जठराग्नि), रसादि सात धातु, सम अवस्था में तथा स्थिर रहते हैं, मल मूत्रादि की क्रिया ठीक होती है और शरीर की सब क्रियायें समान और उचित हैं, और जिसके मन इन्द्रिय और आत्मा प्रसन्न रहें वह मनुष्य स्वस्थ है ।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार,
धारणा, ध्यान, समाधय: अष्टौ अङ्गानि।
सिद्धांत, व्यक्तिगत अनुशासन, मुद्राएं, जीवन शक्तियों पर नियंत्रण, संवेदना, ध्यान केंद्रित एकाग्रता, ध्यान, और प्रबोधन योग के आठ अंग हैं।
योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैदिकेन ।
योपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोस्मि॥
जिन्होंने मन की शांति और पवित्रता के लिए योग दिया, भाषण की स्पष्टता और शुद्धता के लिए व्याकरण दिया, और स्वास्थ्य की पूर्णता के लिए औषधि, आइए हम महान ऋषि पतंजलि को नमन करें।