सत्संगति पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Slokas on Satsangati
असज्जनः सज्जनसंगि संगात्
करोति दुःसाध्यमपीह साध्यम् ।
पुष्याश्रयात् शम्भुशिरोधिरूठा
पिपीलिका चुम्बति चन्द्रबिम्बम् ॥
सज्जन के सहवास से असज्जन दुःष्कर कार्य को भी साध्य बनाता है । पुष्प का आधार लेकर शंकर के मस्तक पर की चींटी चंद्रबिंब का चुंबन करती है।
गंगेवाधविनाशिनो जनमनः सन्तोषसच्चन्द्रिका
तीक्ष्णांशोरपि सत्प्रभेव जगदज्ञानान्धकारावहा ।
छायेवाखिलतापनाशनकारी स्वर्धेनुवत् कामदा
पुण्यैरेव हि लभ्यते सुकृतिभिः सत्संगति र्दुर्लभा ॥
गंगा की तरह पाप का नाश करनेवाली, चंद्र किरण की तरह शीतल, अज्ञानरुपी अंधकारका नाश करनेवाली, ताप को दूर करनेवाली, कामधेनु की तरह इच्छित चीज देनेवाली, बहुत पुण्य से प्राप्त होनेवाली सत्संगति दुर्लभ है ।
सन्तप्तायसि संस्थितस्य पयसः नामापि न श्रूयते
मुक्ताकारतया तदेव नलिनीपत्रस्थितं राजते ।
स्वात्यां सागरशुक्ति संपुट्गतं तन्मौक्तिकं जायते
प्रायेणाधममध्यमोत्तम गुणाः संसर्गतो देहिनाम् ॥
तप्त लोहे पर पानी का नाम निशान नहीं रहता । वही पानी कमल के पुष्प पर हो तो मोती जैसा लगता है, और स्वाति नक्षत्र में छीप के अंदर अगर गिरे तो वह मोती बनता है । ज़ादा करके अधम, मध्यम और उत्तम दशा संसर्ग से होती है ।
कीर्तिनृत्यति नर्तकीव भुवने विद्योतते साधुता
ज्योत्स्नेव प्रतिभा सभासु सरसा गंगेव संमीलति ।
चित्तं रज्जयति प्रियेव सततं संपत् प्रसादोचिता
संगत्या न भवेत् सतां किल भवेत् किं किं न लोकोत्तरम् ॥
कीर्ति नर्तकी की तरह नृत्य करती है । दुनिया में साधुता प्रकाशित होती है । सभा में ज्योत्सना जैसी सुंदर प्रतिभा गंगा की तरह आ मिलती है, चित्तको प्रियाकी तरह आनंद देती है, प्रसादोचित् संपद आती है । अच्छे मानव के सहवास से कौनसा लोकोत्तर कार्य नहीं होता ?
सत्संगाद्ववति हि साधुता खलानाम्
साधूनां न हि खलसंगात्खलत्वम् ।
आमोदं कुसुमभवं मृदेव धत्ते
मृद्रंधं न हि कुसुमानि धारयन्ति ॥
सत्संग से दुष्ट लोग अच्छे बनते हैं, लेकिन दुष्ट की सोबत से अच्छे लोग बुरे (दुष्ट) नहीं बनते । फ़ूल में से पेदा हुई सुवास मिट्टी लेती है, लेकिन पुष्प मिट्टी कि सुवास (गंध) नहीं लेते ।
कल्पद्रुमः कल्पितमेव सूते
सा कामधुक कामितमेव दोग्धि ।
चिन्तामणिश्र्चिन्तितमेव दत्ते
सतां हि संगः सकलं प्रसूते ॥
कल्पवृक्ष कल्पना किया हुआ हि देता है, कामधेनु इच्छित वस्तु ही देती है, चिंतामणी जिसका चिंतन करते हैं वही देता है, लेकिन सत्संग तो सब कुछ देता है ।
संगः सर्वात्मना त्याज्यः स चेत्कर्तुं न शक्यते ।
स सिद्धिः सह कर्तव्यः सन्तः संगस्य भेषजम् ॥
कुसंग का त्याग पूर्णरुप से करना चाहिए वह अगर शक्य नहीं है। सज्जन का संग करना चाहिए क्यों कि सज्जन संग का औषधि है ।
कीटोऽपि सुमनःसंगादारोहति सतां शिरः ।
अश्मापि याति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः ॥
पुष्प के संग से कीडा भी अच्छे लोगों के मस्तक पर चढता है । बडे लोगों से प्रतिष्ठित किया गया पत्थर भी देव बनता है ।
असतां संगपंकेन यन्मनो मलिनीक्र्तम् ।
तन्मेऽद्य निर्मलीभूतं साधुसंबंधवारिणा ॥
कीचड जैसे दुर्जन के संग से मलिन हुआ मेरा मन आज साधुसंगरुपी पानी से निर्मल बना ।
शिरसा सुमनःसंगाध्दार्यन्ते तंतवोऽपि हि ।
तेऽपि पादेन मृद्यन्ते पटेऽपि मलसंगताः ॥
फ़ूलके संग से धागाभी मस्तक पर धारण होता है, और वही धागा जाल के संग से पाँव तले कुचला जाता है
दूरीकरोति कुमतिं विमलीकरोति
चेतश्र्चिरंतनमधं चुलुकीकरोति ।
भूतेषु किं च करुणां बहुलीकरोति
संगः सतां किमु न मंगलमातनोति ॥
कुमति को दूर करता है, चित्त को निर्मल बनाता है । लंबे समय के पाप को अंजलि में समा जाय एसा बनाता है, करुणा का विस्तार करता है; सत्संग मानव को कौन सा मंगल नहीं देता ?
पश्य सत्संगमाहात्म्यं स्पर्शपाषाणयोदतः ।
लोहं च जायते स्वर्णं योगात् काचो मणीयते ॥
सत्संग का महत्व देखो, पाषाण के स्पर्श से लोहा सोना बनता है और सोनेके योग से काच मणी बनता है ।
हरति ह्रदयबन्धं कर्मपाशार्दितानाम्
वितरति पदमुच्चैरल्प जल्पैकभाजाम् ।
जनमनरणकर्मभ्रान्त विधान्तिहेतुः
त्रिजगति मनुजानां दुर्लभः साधुसंगः ॥
कर्मपाश से पीडित मानव के ह्रदयबंधको हर लेता है, छोटे मानवको उँचा स्थान देता है, जन्म-मरण की भ्रांति में से विश्रांति देता है; तीनों लोक में साधुसंग अत्यंत दुर्लभ है ।
नलिनीदलगतजलवत्तरलं
तद्वज्जीवनमतिशयचपलम् ।
क्षणमपि सज्जनसंगतिरेका
भवति भवार्णवतरणे नौका ॥
कमलपत्र पर पानी जैसा चंचल यह जीवन अतिशय चपल है । इसलिए एक क्षण भी की हुई सज्जनसंगति भवसागर को पार करनेवाली नौका है ।
तत्त्वं चिन्तय सततंचित्ते
परिहर चिन्तां नश्र्वरचित्ते ।
क्षणमिह सज्जनसंगतिरेका
भवति भवार्णतरणे नौका ॥
सतत चित्त में तत्व का विचार कर, नश्वर चित्तकी चिंता छोड दे । एक क्षण सज्जन संगति कर, भव को तैरनेमें वह नौका बनेगी ।
मोक्षद्वारप्रतीहाराश्र्चत्वारः परिकीर्तिताः
शमो विवेकः सन्तोषः चतुर्थः साधुसंगमः ॥
शम, विवेक, संतोष और साधुसमागम – ये चार मोक्षद्वार के पहेरेदार हैं ।
सन्तोषः साधुसंगश्र्च विचारोध शमस्तथा ।
एत एव भवाम्भोधावुपायास्तरणे नृणाम् ॥
संतोष, साधुसंग, विचार, और शम इतने हि उपाय भवसागर पार करनेके लिए मानवके पास है ।
Nice sloka of Sanskrit
they were really excellent and left a good message for all of us .
Why that Bible ad is coming.
It is not connected with the contents.
I admire all religions. But it doesn’t mean you screw me or ask me to read Bible.
Hi Sunil Ji, Bible ad is appearing automatically by the google ads services. This is not controlled by us and based on your search experience in the browser, it shows to you and at the same time any other person can get other product ad on the same content.
This website is committed to spread the glory of Sanatan Dharma.
हरि 🕉 नारायण नारायण