सूफीवाद: धर्मान्तरण की बुनियाद | Sufism: Islamic Propaganda for Conversion

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सूफीवाद धर्मान्तरण की बुनियाद
Sufism: Islamic Propaganda for Religious Conversion

आज हिंदी फिल्मों का कोई प्रसिद्द अभिनेता या अभिनेत्री अजमेर में गरीब नवाज़ अथवा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर चादर चढ़ा कर अपनी फिल्म के हिट होने की मन्नत मांगने के लिए गया। भारतीय समाज में भी एक विशेष आदत हैं, वह हैं अँधा अनुसरण करने की। क्रिकेट स्टार, फिल्म अभिनेता, बड़े उद्योगपति जो कुछ भी करे भी उसका अँधा अनुसरण करना चाहिए चाहे बुद्धि उसकी अनुमति दे चाहे न दे||अज्ञान वश लोग दरगाहों पर जाने को हिन्दू मुस्लिम एकता और आपसी भाईचारे का प्रतिक मान लेते हैं , लेकिन उनको पता नहीं कि सूफीवाद भी कट्टर सुन्नी इस्लाम एक ऐसा संप्रदाय है ,जो बिना युद्ध और जिहाद के हिन्दुओं को मुसलमान बनाने में लगा रहता है , भारत -पाक में सूफियों के चार फिरके हैं , पूरे भारत में इनकी दरगाहें फैली हुई हैं ,जहां अपनी मन्नत पूरी कराने के लालच में हिन्दू भी जाते हैं…

सूफियों के चार फिरके:

1-चिश्तिया ( چشتی‎ )
2-कादिरिया ( القادريه,)
3-सुहरावर्दिया سهروردية‎)
4-नक्शबंदी ( نقشبندية‎ )

इन सभी का उद्देश्य हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराना और दुनिया में ” निज़ामे मुस्तफा -نظام مصطفى‎ ” स्थापित करना है . जिस समय भारत की आजादी का आंदोलन चल रहा था सूफी ” तबलीगी जमात – تبلیغی جماعت” बनाकर गुप्त रूप से हिन्दुओं का धर्म परवर्तन कराकर मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने का षडयंत्र चला रहे थे .

दिल्ली के एक कोने में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह हैं। 1947से पहले इस दरगाह के हाकिम का नाम था ख्वाजा हसन निजामी था।(1878-1955)

आज के मुस्लिम लेखक निज़ामी की प्रशंसा उनके उर्दू साहित्य को देन अथवा बहादुर शाह ज़फर द्वारा 1857 के संघर्ष पर लिखी गई पुस्तक को पुन: प्रकाशित करने के लिए करते हैं। परन्तु निज़ामी के जीवन का एक और पहलु था। वह गुप्त जिहादी था |

धार्मिक मतान्धता के विष से ग्रसित निज़ामी ने हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए 1920 के दशक में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम था दाइये इस्लाम-دايءاسلام ” इस पुस्तक को इतने गुप्त तरीके से छापा गया था की इसका प्रथम संस्करण का प्रकाशित हुआ और कब समाप्त हुआ इसका मालूम ही नहीं चला।

इसके द्वितीय संस्करण की प्रतियाँ अफ्रीका तक पहुँच गई थी। इस पुस्तक में उस समय के 21 करोड़ हिन्दुओं में से 1 करोड़ हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने का लक्ष्य रखा गया था।

एक आर्य सज्जन को उसकी यह प्रति अफ्रीका में प्राप्त हुई जिसे उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद जी को भेज दिया। स्वामी ने इस पुस्तक को पढ़ कर उसके प्रतिउत्तर में पुस्तक लिखी जिसका नाम था “खतरे का घंटा”।

इस पुस्तक के कुछ सन्दर्भों के दर्शन करने मात्र से ही लेखक की मानसिकता का बोध हमें आसानी से मिल जायेगा की किस हद तक जाकर हिन्दुओं को मुस्लमान बनाने के लिए मुस्लिम समाज के हर सदस्य को प्रोत्साहित किया गया था जिससे न केवल धार्मिक द्वेष के फैलने की आशंका थी अपितु दंगे तक भड़कने के पूरे असार थे।

आइये “खतरे का घंटा” के कुछ अंशों जानते है …

1- फकीरों के कर्तव्य – जीवित पीरों की दुआ से बे औलादों के औलाद होना या बच्चों का जीवित रहना या बिमारियों का दूर होना या दौलत की वृद्धि या मन की मुरादों का पूरा होना, बददुआओं का भय आदि से हिन्दू लोग फकीरों के पास जाते हैं बड़ी श्रद्धा रखते हैं।

मुस्लमान फकीरों को ऐसे छोटे छोटे वाक्य याद कराये जावे,जिन्हें वे हिन्दुओं के यहाँ भीख मांगते समय बोले और जिनके सुनने से हिन्दुओं पर इस्लाम की अच्छाई और हिन्दुओं की बुराई प्रगट हो।

2- गाँव और कस्बों में ऐसा जुलुस निकालना जिनसे हिन्दू लोगों में उनका प्रभाव पड़े और फिर उस प्रभाव द्वारा मुसलमान बनाने का कार्य किया जावे।

3-गाने बजाने वालों को ऐसे ऐसे गाने याद कराना और ऐसे ऐसे नये नये गाने तैयार करना जिनसे मुसलमानों में बराबरी के बर्ताव के बातें और मुसलमानों की करामाते प्रगट हो।

4- गिरोह के साथ नमाज ऐसी जगह पढ़ना जहाँ उनको दूसरे धर्म के लोग अच्छी तरह देख सके और उनकी शक्ति देख कर इस्लाम से आकर्षित हो जाएँ।

5-. ईसाईयों और आर्यों के केन्द्रों या उनके लीडरों के यहाँ से उनके खानसामों, बहरों, कहारों चिट्ठीरसारो, कम्पाउन्डरों,भीख मांगने वाले फकीरों, झाड़ू देने वाले स्त्री या पुरुषों, धोबियों, नाइयों, मजदूरों, सिलावतों और खिदमतगारों आदि के द्वारा ख़बरें और भेद मुसलमानों को प्राप्त करनी चाहिए।

6- सज्जादा नशीन अर्थात दरगाह में काम करने वाले लोगों को मुस्लमान बनाने का कार्य करे।

7- ताबीज और गंडे देने वाले जो हिन्दू उनके पास आते हैं उनको इस्लाम की खूबियाँ बतावे और मुस्लमान बनने की दावत दे।

8-. देहाती स्कूलों के मुस्लिम अध्यापक अपने से पढने वालों को और उनके माता पिता को इस्लाम की खूबियाँ बतावे और मुस्लमान बनने की दावत दे।

9- नवाब रामपुर, टोंक, हैदराबाद , भोपाल, बहावलपुर और जूनागढ आदि को , उनके ओहदेदारों , जमींदारों , नम्बरदार, जैलदार आदि को अपने यहाँ पर काम करने वालो को और उनके बच्चों को इस्लाम की खूबियाँ बतावे और मुस्लमान बनने की दावत दे।

10. माली, किसान,बागबान आदि को आलिम लोग इस्लाम के मसले सिखाएँ क्यूंकि साधारण और गरीब लोगों में दीन की सेवा करने का जोश अधिक रहता हैं।

11- दस्तगार जैसे सोने,चांदी,लकड़ी, मिटटी, कपड़े आदि का काम करने वालों को अलीम इस्लाम के मसलों से आगाह करे जिससे वे औरों को इस्लाम ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करे।

12- फेरी करने वाले घरों में जाकर इस्लाम के खूबियों बताये , दूकानदार दुकान पर बैठे बैठे सामान खरीदने वाले ग्राहक को इस्लाम की खूबियाँ बताये।

13- पटवारी, पोस्ट मास्टर, देहात में पुलिस ऑफिसर, डॉक्टर , मिल कारखानों में बड़े औहदों पर काम करने वाले मुस्लमान इस्लाम का बड़ा काम अपने नीचे काम करने वाले लोगों में इस्लाम का प्रचार कर कर हैं सकते हैं।

14 राजनैतिक लीडर, संपादक , कवि , लेखक आदि को इस्लाम की रक्षा एह वृद्धि का काम अपने हाथ में लेना चाहिये।

15-. स्वांग करने वाले, मुजरा करने वाले, रण्डियों को , गाने वाले कव्वालों को, भीख मांगने वालो को सभी भी इस्लाम की खूबियों को गाना चाहिये।

1947 के पहले यह सब कार्य जोरो पर था , हिन्दू समाज के विरोध करने पर दंगे भड़क जाते थे, अपनी राजनितिक एकता , कांग्रेस की नीतियों और अंग्रेजों द्वारा प्रोत्साहन देने से दिनों दिन हिन्दुओं की जनसँख्या कम होती गई जिसका अंत पाकिस्तान के रूप में निकला।

साईं संध्या का कुचक्र:

देश भर में हिन्दू समाज द्वारा साईं संध्या को आयोजित किया जाता हैं जिसमे अपने आपको सूफी गायक कहने वाला कव्वाल हमसर हयात निज़ामी बड़ी शान से बुलाया जाता हैं। बहुत कम लोग यह जानते हैं की कव्वाल हमसर हयात निज़ामी के दादा ख्वाजा हसन निज़ामी के कव्वाल थे और अपने हाकिम के लिए ठीक वैसा ही प्रचार इस्लाम का करते थे जैसा निज़ामी की किताब में लिखा हैं। कहते हैं की समझदार को ईशारा ही काफी होता हैं यहाँ तो सप्रमाण निजामुद्दीन की दरगाह के हाकिम ख्वाजा हसन निजामी और उनकी पुस्तक दाइये इस्लाम पर प्रकाश डाला गया हैं। ताकि हिन्दू भविष्य में किसी औलिया पीर या साईँ की कब्रों पर जाकर लाशों की पूजा करने की वैसी भूल नहीं करें, जिस से देश का विभाजन हुआ था, जिसका फल हिन्दू आज भी भोग रहे है, बताइए अभी नहीं तो हिन्दू समाज कब इतिहास और अपनी गलतियों से सीखेगा?


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Shweta Pratap

I am a defense geek

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