हिमालय के सीधे ढालों पर भी सीधे खडे़ बृक्ष कभी पथरीली मिट्टी और प्राकृतिक झंझावातोँ की शिकायत नहीँ करते ओर अपना पूरा ध्यान आसमान की ओर लगाए सीधे बढने के लिए पूरी उर्जा लगाते हैँ । सोचता हूँ मैदान मेँ उगने वाले झाड़ीदार पेड जिनके पास उर्वरा मिट्टी ओर प्राकृतिक अनुकूलता होते हुए भी ऊंचा उठने की आंतरिक जिजीविषा नहीं ।
सफल होने वाले व्यक्तित्व भी एसी पहाडी पेडों की तरह जो अपने जीवन की कठिनाइयाँ की परवाह न करते हुए जितनी भी सीमित ऊर्जा हे उसको आगे बढ़ने मेँ लगाते हे और अपना सर्वश्रेष्ठ देते हुए अपनी पहचान बनाते हैं ।
जबकि आंतरिक जिजीविषा हीन असफल व्यक्ति अपने जीवन मेँ मैदानी पेडो़ की तरह सिर्फ चारोँ दिशाओं का रसानंद लेते हुए समाज की विपरीत परिस्थितियोँ का रोना रोते ही रहते हैं ।
वही बीज पनपा, पनपना जिसे था ।
धुआँ क्या किसी के उठाए उठा है ॥
Totally agree with you.
Jeevan me kabhi piche nhi haTna chahiye chahe kaisi b situation ho hum bas apne goal pe conc. Krna chahiye.
You are the best example.