गुणों की श्रेष्ठता पर संस्कृत श्लोक हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित
व्यालाश्रयापि विकलापि सकण्टकापि
वक्रापि पङ्किलभवापि दुरासदापि |
गन्धेन बन्धुरसि केतकि सर्वजन्ता-
रेको गुणः खलु निहन्ति समस्त दोषान्||
– चाणक्य नीति (१७/२१ )
भावार्थ – यह सर्वविदित है कि केतकी के वृक्षक (झाड) में सांप निवास करते हैं , वह अपूर्ण भी होता है , उसमें कांटे भी होते हैं, वह कीचड में उगता है, उसका आकार टेढा होता है और उस तक पहुंचना (उसके फूल चुनना ) कठिन और हानिकर भी होता है | परन्तु फिर भी उसकी सुगन्ध से मित्रता है (उसके पुष्प अत्यन्त सुगन्धित होते हैं) और उसका यही एक गुण उसके समस्त दोषों को नष्ट कर देता है।
(उपर्युक्त सुभाषित का तात्पर्य यह है कि यदि किसी वस्तु या व्यक्ति में कोई महान गुण हो तो उसके अन्य दोषों को लोग स्वीकार कर लेते हैं | एक कहावत भी है कि – ‘दुधारू गाय की लात भी भली ‘)
Sanskrit shlokas on the superiority of virtues
English
vyalashrayapi vikalapi sakantakapi
vakrapi pankilabhavapi durasadapi |
gandhena bandhurasi ketaki sarvajanta-
reko gunah khalu nihanti samasta doshan||
IAST
vyālāśrayāpi vikalāpi sakaṇṭakāpi
vakrāpi paṅkilabhavāpi durāsadāpi |
gandhena bandhurasi ketaki sarvajantā-
reko guṇaḥ khalu nihanti samasta doṣān||
Meaning: It is very well known that the shrub of ‘Ketaki’ is a shelter of snakes, is imperfect , is full of thorns, its shape is curved, grows in slush and it is dangerous and difficult to approach (for its flowers). But still its only one virtue of friendship with fragrance (having fragrant and beautiful flowers) destroys all its defects.
(The idea behind this subhashita is that if a thing or a person has even one very important virtue people do not mind the defects in them. There is also a saying that people tolerate even the kicks by a cow while milking it.)
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