शिवा बावनी भूषण अर्थ सहित, साजि चतुरंग सैन अर्थ, कवि भूषण शिवाजी कविता

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शिवा बावनी महाकवि भूषण द्वारा तब शिवाजी की वीरता में लिखी गई जब वो अपने जन्मस्थान कानपुर क्षेत्र को मुगलों के अत्याचार से छोड़ शिवाजी के राज्य आश्रय में चले गए | यह 52 मुक्तकों की कालजयी रचना इतनी ओजस्वी है की रोमांच कर देती है |

भूषण की कविताओं की भाषा बृज भाषा है परंतु उन्होंने अपनी रचनाओं में उर्दू, फारसी आदि के शब्दों का बहुतायत से प्रयोग किया है। भूषण के 6 ग्रंथ माने जाते हैं परंतु उनमें से केवल 3 ही ग्रंथ, शिवराज भूषण, छत्रसाल दशक व शिवा बावनी ही उपलब्ध हैं। भूषण के नायक शिवाजी थे। शिवाजी का महिमा मंडन भूषण के काव्य में सर्वत्र दिखता है।

 

रीतिकाल में भी वीर रस का सुंदर काव्य लिखने के कारण हिंदी साहित्य में कविवर भूषण का विशिष्ट स्थान है। यहां पर मनहरण छंद का प्रयोग एवं शब्दों का चयन वीरता की ध्वनि उत्पन्न करने के लिये किया गया है।

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साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है ।
‘भूषण’ भनत नाद विहद नगारन के,
नदी नद मद गैबरन के रलत है ।।
ऐल फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल,
गजन की ठेल पेल सैल उसलत है ।
तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,
थारा पर पारा पारावार यों हलत है ।।

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अपनी चतुरंगिनी सेना को वीरता से परिपूर्ण कर घोड़े पर चढ़कर शिवाजी युध्द जीतने निकाल पड़े हैं।
नगाड़े बज रहे हैं और मतवाले हाथियों के मद से सभी नदी-नाले भर गये हैं।
(ऐल) भीड़, कोलाहल, चीख-पुकार, (फैल) फैलने से (गैल) रास्तो पर (खैल-भैल) खलबली मच रही है ।
हाथियों चलने के कारण धक्का लगने से रास्ते के पहाड़ उखड कर गिर रहे हैं।
विशाल सेना के चलने से उड़ने वाली धूल के कारण सूरज भी एक टिमटिमाते हुए तारे सा दिखने लगा है।
सेना के चलने से संसार ऐसे डोल रहा है जैसे थाली में रखा हुआ पारा हिलता है।

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इंद्र जिमी जम्भ पर, बाड़व सो अम्ब पर,
रावण सदम्भ पर रघुकुलराज हैं
पौन बरिवाह पर, संभु रतिनाह पर,
ज्यो सहसबाह पर रामद्विजराज हैं

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जैसे इन्द्र जम्भासुर का नाश करते हैं , बड़वानल अग्नि समुद्र को सोख लेती है,
रघुकुलराज राम अहंकारी रावण का पराभव करते हैं
जैसे वायु बादलों को छिन्न भिन्न कर देता है, शिव कामदेव को भस्म कर देते हैं
जैसे द्विजराज परसुराम सहसबाहु को पराजित करते हैं (वीर शिवाजी मुगलों पर वैसे ही भरी पड़ते हैं)

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As Indra is unto the demon Jambhasur, and Badvanal (sea’s fire) unto the seas,
and Raghukulraj Ram unto the proud Ravan,
wind unto the clouds, Shiv-Shambhu unto Rati’s husband (Kamdev),
Brahmin-raam (Parashuram) unto SahasraBahu

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दावा द्रुमदंड पर,चीता मृगझुंड पर,
भूषण बितुंड पर जैसे मृगराज हैं
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यों मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज हैं

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दावानल जैसे विशाल वृक्ष को राख़ कर है, चीता मृगों के झुण्ड को तहस नहस कर देता है
भूषण कहते हैं जैसे सिंह हाथी को पछाड़ देता है
प्रकाश अंधकार को समाप्त कर देता है, कृष्ण कंस का संहार करते हैं
वैसे ही मुगलों के वंश पर अपना शेर वीर शिवाजी भारी पड़ता है

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forest-fire unto a tree-trunk, a panther unto a flock of deer,
a lion unto an elephant,
a ray of light unto a corner of darkness, Kanhaiya unto Kans,
so unto the mlenchchh (Mughals) race is Nar-sinh Shiva Ji as a destroyer.

– shivesh


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Shivesh Pratap

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