सिंधु जल संधि (समझौता) 1960 ( Indus Water Treaty 1960) पानी के वितरण लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक संधि है।
सिंधु जल संधि 1960 ( Indus Water Treaty 1960) में विश्व बैंक (तत्कालीन पुनर्निर्माण और विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय बैंक) ने मध्यस्थता की थी।
सिंधु जल संधि 1960 ( Indus Water Treaty 1960) पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।
1951 में प्रधानमंत्री नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया. लिलियंथल पाकिस्तान भी गए और वापस अमरीका लौटकर उन्होंने सिंधु नदी के बंटवारे पर एक लेख लिखा. ये लेख विश्व बैंक प्रमुख और लिलियंथल के दोस्त डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा और ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से इस बारे में संपर्क किया. और फिर शुरू हुआ दोनो पक्षों के बीच बैठकों का सिलसिला.
सिंधु जल संधि 1960 ( Indus Water Treaty 1960) के अनुसार, तीन “पूर्वी” नदियों — ब्यास, रावी और सतलुज — का नियंत्रण भारत को तथा तीन “पश्चिमी” नदियों — सिंधु, चिनाब और झेलम — का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया।
सिंधु जल संधि 1960 ( Indus Water Treaty 1960) के तहत ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का दोनों देशों के बीच बंटवारा होता है।
सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. ये इलाका पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6 प्रतिशत) में है.
सिंधु जल संधि 1960 ( Indus Water Treaty 1960) के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी के कुल पानी का केवल 20% का उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है।
भारत ने 1960 में ये सोचकर पाकिस्तान से संधि पर हस्ताक्षर किए कि उसे जल के बदले शांति मिलेगी लेकिन संधि के अमल में आने के पांच साल बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर 1965 में हमला कर दिया.
दोनो देशों के बीच दो युद्धों और एक सीमित युद्ध कारगिल और हज़ारों दिक्क़तों के बावजूद ये संधि कायम है. विरोध के स्वर उठते रहे लेकिन संधि पर असर नहीं पड़ा.
संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की की अनुमति है।
ब्रह्म चेलानी के ‘द हिंदू’ में लिखे लेख की माने तो, “भारत वियना समझौते के “लॉ ऑफ़ ट्रीटीज़ की धारा 62” के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का इस्तेमाल उसके खिलाफ़ कर रहा है. अंततराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा है कि अगर मूलभूत स्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी संधि को रद्द किया जा सकता है.”
एक आंकड़े के मुताबिक करीब 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं.
ये झगड़ा 1947 भारत के बंटवारे के पहले से ही शुरू हो गया था, खासकर पंजाब और सिंध प्रांतों के बीच.
1947 में भारत और पाकिस्तान के इंजीनियर मिले और उन्होंने पाकिस्तान की तरफ़ आने वाली दो प्रमुख नहरों पर एक ‘स्टैंडस्टिल समझौते’ पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार पाकिस्तान को लगातार पानी मिलता रहा. ये समझौता 31 मार्च 1948 तक लागू था.
1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं था तो भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन पर हालात खराब हो गए|
भारत के इस कदम के कई कारण बताए गए जिसमें एक था कि भारत कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता था. बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी की आपूर्ति जारी रखने पर राज़ी हो गया.
जम्मू कश्मीर सरकार के मुताबिक इस संधि के कारण राज्य को हर साल करोड़ो का आर्थिक नुकसान हो रहा है. संधि पर पुनर्विचार के लिए विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित किया था.
सिंधु जल समझौता 1960 के प्रमुख निर्णय:
समझौते के अंतर्गत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया. सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया.
समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़े दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है. पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के भीतर कुछ इन नदियों के पानी का कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी.
अगर कोई देश किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है और दूसरे देश को उसकी डिज़ाइन पर आपत्ति है तो दूसरा देश उसका जवाब देगा, दोनो पक्षों की बैठकें होंगी. अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ़ पाती हैं तो सरकारें उसे सुलझाने की कोशिश करेंगी.
इसके अलावा समझौते में विवादों का हल ढूंढने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ आर्ब्रिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया है.
सिंधु जल समझौता 1960 पर क्या विवाद है?
दोनों देशों के बिना किसी बड़े विवाद के इस संधि के तहत पानी का बंटवारा चलता रहा है। लेकिन, विशेषज्ञों का कहना है कि इस समझौते से भारत को एकतरफा नुकसान हुआ है और उसे छह सिंधु नदियों की जल व्यवस्था का महज 20 फीसदी पानी ही मिला है।
पाकिस्तान ने इसी साल जुलाई में भारत द्वारा झेलम और चिनाब नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने तैयारी की आशंका में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग की थी।
हालांकि, इस समझौते को सबसे सफल जल बंटवारे समझौतों में से एक के रूप में देखा जाता है लेकिन अब दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच मौजूदा तनाव में यह समझौता टूटने की आशंका पैदा हो गई है। सामरिक मामलों और सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य के युद्ध पानी के लिए लड़े जाएंगे।
कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि यदि भारत ‘पश्चिमी नदियों’ के पानी का भंडारण शुरू कर दे (संधि के तहत जिसकी इजाजता है, भारत 36 लाख एकड़ फीट का इस्तेमाल कर सकता है) तो पाकिस्तान के लिए कड़ा संदेश होगा। पाकिस्तान इस मामले में भारत द्वारा कुछ करने की आहट से ही अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए दौड़ पड़ता है। इससे उस पर काफी दबाव पड़ेगा।